Qissa Hazrat Yusuf a.s – हज़रत युसूफ अ०स० का क़िस्सा
بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है”
हज़रत युसूफ (अ०स०) –
मशहूर नबियों में हज़रत युसूफ (अ०स०) का नाम भी शामिल है, जिसका ज़िक्र कुरआन मजीद के (सुरह युसूफ) में तफ़सीर से आया है | हज़रत युसूफ (अ०स०) के किस्से को कुरआन मजीद में अहसानुल क़सस (सबसे अच्छा क़िस्सा ) कहा गया है | हज़रत युसूफ (अ०स०) एक एसे नबी हैं जिनके बाप,दादा,परदादा सब पैगम्बर थे |
कुरआन मजीद में ज़िक्र –
कुरआन मजीद की बारवी सूरत और पारह 12 और 13 में तफसील से हज़रत युसूफ (अ०स०) का ज़िक्र आया है |
तर्जुमा –
(ए पैगम्बर ) हम ने तुम पर ये कुरआन जो वहीह के ज़रिये भेजा है इस के ज़रिये हम तुम्हे एक बेहतरीन वाकिया सुनाते हैं, जबकि तुम इस से पहले (वाक़िये) से बिलकुल बेखबर थे |
नबी पाक (स०अ०) का इरशाद –
हमारे प्यारे नबी (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया “ करीम इब्ने करीम,इब्ने करीम “ यानी करीम का बेटा,करीम का बेटा |
हज़रत युसूफ (अ०स०) का बचपन और ख़वाब –
हज़रत युसूफ (अ०स०) अपने वालिद हज़रत याक़ूब के चहीते बेटे थे | हज़रत युसूफ (अ०स०) के 11 भाई थे जिनमे बिनयामीन आप के सगे भाई और बाकी के सौतेले थे |
एक दिन हज़रत युसूफ (अ०स०) ने अपने वालिद से एक ख़वाब के बारे में ज़िक्र किया, आप (अ०स०) ने खवाब में देखा की 11 सितारों और सूरज,चाँद सब सजदा कर रहे हैं | हज़रत याकूब (अ०स०) ने कहा प्यारे बच्चे इस ख़वाब का ज़िक्र अपने भाइयों से न करना कहीं एसा न हो के वो तुमसे फ़रेब करे | क्यूंकि उनके भाई (बिनयामीन के अलावा ) आप से हसद करते थे और इसकी वजह ये थी के आप (अ०स०) के वालिद को आपके भाइयों में बेहद महबूब थे |
हज़रत युसूफ (अ०स०) को कुंवे में डालना –
हज़रत युसूफ (अ०स०) के भाइयों को ये बात पसंद न थी के उनके वालिद ज्यादा तरजीह सिर्फ युसूफ (अ०स०) को दें और इसी वजह से उन्हें आपसे हसद थी |
उन भाइयों ने आपस में मशवरा किया और युसूफ (अ०स०) के क़त्ल का मंसूबा बनाने लगे | उनमे से बड़े भाई यहूदा ने कहा की क़त्ल एक संगीन जुर्म है लिहाज़ा क़त्ल न करो बलके कहीं गायब करदो या किसी कुंवे में फ़ेक आओ और बाद में तौबा कर लेंगे ताके हमारे बाप का तवज्जो सिर्फ हमारे तरह ही रहे |
फिर सब मिलके अपने वालिद के पास आये और कहने लगे –बाबा कल युसूफ को हमारे साथ भेज दें ताके वो हमारे साथ खेले कूदे और कहा – यकीनन हम युसूफ के खैरखा हैं | जवाब में याकूब (अ०स०) के कहा के मुझे इस बात का खौफ है के कहीं तुम्हारे गफ़लत में कोई भेड़िया न खा जाये | बार बार इसरार के बाद याकूब (अ०स०) ने ले जाने की हामी भर दी |
अगले दिन युसूफ (अ०स०) को साथ ले गए और मशवरे के मुताबिक़ उन्होंने युसुफ् (अ०स०) को कुंवे में डाल दिया | आप उस कुंवे में एक पत्थर पर गिरे और अल्लाह तआला के वहीह के ज़रिये आप को इत्मीनान दिलाया के आप जल्द ही निकाल लिए जायेंगे |
उधर उन भाइयों ने एक बकरी जिबह की और युसूफ (अ०स०) की कमीज़ पर उस बकरी का खून लगा कर अपने वालिद के पास रोते हुए गए और कहने लगे के जब हम खेल में मशरूफ थे तब युसूफ को भेडिये ने खा लिए और आप हमारी बात पर यक़ीन करें हम सच्चे हैं | याकूब (अ०स०) ने कहा के अब सब्र ही बेहतर है |
कुंवे से महल तक पहुंचना –
हज़रत युसूफ (अ०स०) उस कुंवे में थे | एक काफ़िला वहां पहुंचा, उस काफ़िले से कुछ लोग पानी के लिए कुंवे के पास आये और अपने पानी का डोल नीचे डाला तो युसूफ (अ०स०) उसी डोल में बैठ कर उपर आ गए | काफिले वालों ने युसुफ (अ०स०) को सामान के साथ छिपा दिया के कोई देख ना ले और अगले सुबह बाज़ार में बेच देंगे |
जब काफिला मिस्र में पहुंचा तो उनहोंने उसुफ़ (अ०स०) को मामूली क़ीमत पर फोरोख्त कर दिया | मिस्र का वज़ीरे खज़ाने (अज़ीज़ ए मिस्र) ने आप (अ०स०) को ख़रीदा और अपने महल ले आया, उसने अपनी बीवी से कहा के इस बच्चे को बड़ा अहतराम से परवरिश करो मुमकिन है के ये हमें फायदा पहुंचाए और हम इसे अपना बेटा बना लें |
अज़ीज़ ए मिस्र की बीवी का फरेब –
अज़ीज़ ए मिस्र के घर हज़रत युसूफ (अ०स०) पले-बड़े और जवान हुए | आप (अ०स०) बचपन से ही बड़े पाकीज़ा और आला अखलाक़ वाले थे | आप बेहद हसीन व जमील थे, अजीज़े मिस्र की बीवी ने जब आपके हुस्न को देखा तो आपको बहलाने और फुसलाने की कोशिश किया करती थी |
एक रोज़ अज़ीज़ ए मिस्र की बीवी ने सारे दरवाज़े बंद कर दिये और बनो –सिंगार से साथ आप (अ०स०) को बहलाने लगी और बदकारी के लिए उकसाने लगी | युसूफ (अ०स०) ने कहा – अल्लाह की पनाह,ये कभी नहीं हो सकता के मैं अपने मालिक की बीवी से बदकारी करूं के उसने मुझे बेटा की तरह पाला है | आपने फ़ौरन इनकार कर दिया |
जब युसूफ (अ०स०) वहां से दरवाज़े की तरफ भागने लगे तो पीछे से अज़ीज़ ए मिस्र की बीवी ने उन्हें पकड़ने लगी और इसी में युसूफ (अ०स०) का कुरता पीछे से फट गई | दरवाज़े पर अजीज़े मिस्र उन्हें मिला | अजीज़े मिस्र को देखते ही उसकी बीवी बोली – जो शख्स तुम्हारी बीवी से बुरा इरादा करे तो उसके लिए क्या सज़ा है और खुद ही कहने लगी के इसे क़ैद खाने में बंद कर दो |
युसूफ (अ०स०) ने कहा – ये औरत ही मुझे फुसला रही थी | फिर वही मौजूद किसी ने कहा के अगर कुरता आगे से फटी है तो उसुफ़ (अ०स०) झूठे हैं और अगर पीछे से फटी हो तो औरत झूठी है| चुनांचे जब अजीज़े मिस्र ने देखा के कुरता पीछे से फटी है तो कहने लगा ये तो यकीनन औरत का मकरो फरेब है | और कहा –ए औरत तू अपने गुनाह से तौबा कर |
मिस्र की औरतों का ऊँगली काटना –
ये खबर पुरे शहर में फ़ैल गई और अजीज़े मिस्र की बीवी को तरह–तरह की बातें कहने लगे | जब ये बात अजीज़े मिस्र की बीवी को मालूम हुआ तो उसने एक दावत का इंतज़ाम किया और मिस्र के तमाम औरतों को दावत पर बुलाया |
दावत का दिन आया, अजीज़े मिस्र की बीवी ने सबको एक बर्तन जिसमे फल था,थमा दिया और साथ ही एक छुरी भी दिया और युसूफ (अ०स०) को सारे मजमे के सामने बुलाया, जब युसूफ (अ०स०) तशरीफ़ लाये तो सारी औरतों ने फल के बजाये अपने हाथ काट लिए और उनको कोई अहसास भी न हुआ और कहने लगीं – ये इंसान नहीं, ये तो कोई बुज़ुर्ग फ़रिश्ता है | वो सारी औरतें आप (अ०स०) पर दीवाना हो गाईं | ये सब देख कर युसूफ (अ०स०) ने अल्लाह तआला से दुआ किया – “ ए मेरे रब ! जिस बात के लिए ये औरतें मुझे बुला रहीं हैं इससे बेहतर मेरे लिए कैद खाना है और अगर तूने इनका मकरो फरेब दूर नहीं किया तो मैं इनके तरफ माएल हो जाऊंगा और नादानों में जा मिलूंगा “
युसूफ (अ०स०) का जेल जाना और खवाब की ताबीर –
हालात को बेकाबू देखकर अजीज़े मिस्र ने आपस में ये मशवरा किया के युसूफ (अ०स०) को जेल में डाल दिया जाये | चुनांचे आप (अ०स०) जेल में पहुंच गए | जेल में आप के साथ दो और नौजवान भी थे |
एक दिन वो दोनों नौजवानों ने ख्वाब देखा, चूंके वो दोनों नौजवान आपके साथ रहकर ये जान गए थे के आप (अ०स०) बहुत नेक और बेहतरीन इंसान हैं| आपके पास आये और अपनी खवाबों के बारे में बताया |
एक ने कहा- मैंने खवाब में अपने आपको शराब निचोड़ते हुए देखा है और दुसरे ने कहा – मैंने आपने आप को देखा के अपने सर पर रोटी उठाए हुए हूँ जिसे परिंदे खा रहे हैं | युसूफ (अ०स०) ने उनको दीन की दावत दी और (अल्लाह की फ़ज़ल से ) आप ने ख़वाब की ताबीर बताई के एक तो बादशाह को शराब पिलाने पर मुक़रर होगा और दुसरे को सूली दिया जायेगा और परिंदे उसको नोच नोच कर खायेंगे | युसूफ (अ०स०) ने पहले नौजवान से कहा –जब तुम रिहा हो जाओ तो अपने बादशाह से मेरे बारे में भी ज़िक्र करना लेकिन उसे शैतान ने उसको बादशाह से ज़िक्र करने से भुला दिया और हज़रत हुसुफ़ (अ०स०) कई साल तक जेल में रहे |
बादशाह का ख्व़ाब और युसूफ (अ०स०) की रिहाई –
कुछ अरसे बाद मिस्र के बादशाह को ख़वाब आया के सात मोटी गायें हैं जो साथ दुबली पतली लागर गायों को खा रहीं हैं और सात हरी बालियाँ हैं और साथ खुश्क बालियाँ | ये खवाब बादशाह को परेशान कर रही थी | बादशाह ने अपने दरबारियों से खवाब की ताबीर मालूम की तो सब ने इनकार कर दिया |
वो शख्स जो बादशाह के यहाँ शराब पिलाने पर मुक़रर था, अचानक उसे युसूफ (अ०स०) याद आये और उसने बादशाह से कहा मुझे कुछ मोहलत दे दो ताके मैं खवाब की ताबीर बता सकूँ | उस शख्स ने जेल आकर युसूफ (अ०स०) से खवाब की ताबीर पूछी तो युसूफ (अ०स०) के खवाब की ताबीर बताई के – मुसलसल सात साल तक गल्लों में खूब इजाफा होगा और तुम अपने ज़रूरत के हिसाब से खर्च करना और बाकी बालियों समेत रहने देना क्यूंकि उसके बाद सात साल नेहायत क़हद के आयेंगे वो उस गल्ले को खा जायेंगे जो तुमने ज़खीरा रहा था |
उस शख्स ने बादशाह को सारी बात बताई, बादशाह ने युसूफ (अ०स०) को अपने पास बुलाने के लिए कासिद भेजा | कासिद ने युसूफ (अ०स०) को बादशाह का पैग़ाम पहुँचाया लेकिन युसूफ (अ०स०) ये कासिद से कहा के मैं तभी बाहर निकलूंगा जब तक उन औरतों के मामले की हकीक़त वाजेह न हो हाए जिन्होंने इलज़ाम लगाकर जेल में डाला था |
बादशाह ने उन औरतों को बुलाकर क़िस्सा मालूम किया, उस सारी औरतों ने कहा- युसूफ (अ०स०) सच्चे और बेकसूर हैं और हम ही उनपर आशिक़ थी | बादशाह ने युसूफ (अ०स०) का बड़ा इकराम और अहतराम किया और आप को अपने मुल्क का वज़ीरे खज़ाने मुक़रर कर दिया और आप को तमाम अख्तियारात दे दिया |
युसूफ (अ०स०) का अपने भाइयों से मुलाक़ात –
पहले के सात साल गल्लों में खूब अज़ाफा हुआ | हज़रत युसूफ (अ०स०) ने एक हिसाब से गल्लों का इस्तेमाल किया | फिर सात साल बाद क़हद साली का दौर आया, सुखा पड़ने लगा | आस पास के इलाकों में गल्ला ख़तम होने लगा चूंके हज़रत युसूफ (अ०स०) ने सिर्फ ज़रूरत के हिसाब से ही गल्ला इस्तमाल किया था तो आपके पास गल्लों का एक ज़खीरा मौजूद था |
आस पास के इलाकों में जब गल्लों की कमी होने लगी तो वहां के लोग युसूफ (अ०स०) के पास गल्ला लेने के लिए आने लगे | युसूफ (अ०स०) के भाईयों का भी गल्ला ख़तम हो गया तो उनहोंने मिस्र जाने का फैसला किया | जब युसूफ (अ०स०) ने भाई उनके पास आये तो युसूफ (अ०स०) ने उनको पहचान लिया लेकिन उन भाइयों ने आपको नहीं पहचाना |
युसूफ (अ०स०) ने पूछा तुम कौन हो और कहां से आये हो और तुम्हारे वालिद कौन हैं और ये भी पूछा के तुम्हारे कितने भाई हैं, कोई भाई छुट तो नहीं गया वगैरह | युसूफ (अ०स०) ने कहा के तुम अपने उस भाई को भी ले आना जो तुम्हारे वालिद के पास है, ताकि तुम्हे और गल्ला दे सकूँ | युसूफ (अ०स०) ने उनसे रक़म जो उन्होंने दिया था वो उनके बोरियों रखवा दिया ताके वो दोबारा आ सके |
युसूफ (अ०स०) और बिन्यमीन की मुलाक़ात –
गल्ला ले कर युसूफ (अ०स०) के भाई घर पहुंचे और अपने वालिद से कहा के एक बोरी गल्ला और ला सकते थे अगर हम बिन्यमीन को भी साथ ले जाते और जो सरमाया दिया था उसे भी लौटा दिया गया, क्या ही अच्छा होता के आप हमारे साथ बिन्यमीन को भेज दें, हम उसका पूरा ख़याल रखेगे |
याकूब (अ०स०) ने पहले मना किया लेकिन बहुत इसरार करने पर और आप ने इस कौल व करार पर के तुम इसको वापस मेरे पास ले आओगे इज़ाज़त दे दी | युसूफ (अ०स०) ने बिन्यमीन को अपने पास बुलाया और गले लगा लिया और आप (अ०स०) ने कहा में तुम्हारा भाई युसूफ हूँ |
अगले दिन महल ये बात मशहूर हो गई के एक शाही प्याला चोरी हो गया और जिसके पास ये प्याला मिला उसको गिरफ्तार करेंगे | युसूफ (अ०स०) ने बिन्यमीन के बोरी में वह प्याला रखवा दिया था | तलाशी लेने पर वह प्याला बिन्यमीन के सामान से निकला |
युसूफ (अ०स०) के भाइयों ने बहुत मिन्नतें की के इसका बाप बहुत बुढा है और हम में से ही इसके बदले गिरफ्तार कर लीजिये | लेकिन युसूफ (अ०स०) ने मन कर दिया |
युसूफ और युकूब (अ०स०) की मुलाक़ात –
युसूफ (अ०स०) के भाई वापस आके अपने वालिद से ये सारा क़िस्सा सुनाया तो याकूब (अ०स०) ने कहा – अब सब्र ही मेरे लिए बेहतर हैं | जब गल्ला खत्म हो गया तो फिर थोड़ी क़ीमत लेकर युसूफ (अ०स०) के पास पहुंचे और कहने लगे – हमारे पास थोड़ी क़ीमत है आप हमें पूरा गल्ला दें और आप बहुत नेक सीरत हैं |
युसूफ (अ०स०) ने अपने भाइयों को बिला ताखीर अपने बारे में बताया के मैं वही युसूफ हूँ जिनको तुमने कुंवे में फ़ेक दिया था | उन्होंने कहा क्या तू वाकई युसूफ है, आप (अ०स०) ने कहा –हाँ मैं ही युसूफ हूँ | वो सब भाई अपने उस फेल पर अफ़सोस किया |
युसूफ (अ०स०) ने अपना कुरता दिया और कहा – इसको मेरे वालिद के मुह पर रख दो वो देखने लगेंगे और अपने खानदान को मेरे पास ले आओ | चुनांचे वो कुरता लेकर वापस हुए और याकूब (अ०स०) के मुह पर रखा तो उनकी बीनाई वापस आ गई | युसूफ (अ०स०) के भाइयों ने अपने वालिद से कहा- के आप मेरे लिए अल्लाह तआला से बख्शीश की दुआ करिये |
फिर सारा खानदान युसूफ (अ०स०) के पास आ गया | आप (अ०स०) ने अपने माँ बाप को अपने पास बैठाया |
नोट – किस्से की मुक़म्मल तफ़सीर के लिए कुरआन करीम की सुरह युसूफ ज़रूर पढ़े |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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