Qurbani ki Fazilat – क़ुरबानी के अहम् मसाइल
بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है”
क़ुरबानी –
क़ुरबानी करना वाज़िब है | इसका सिलसिला क़दीम ज़माने से चला आ रहा है यानी हज़रत आदम (अ०स०) के ज़माने में हाबील और क़ाबिल ने पहली बार क़ुरबानी पेश की थी |
अल्लाह तआला के हुक्म और रज़ा के लिए हज़रत इब्राहीम (अ०स०) ने अपने बेटे हज़रत इस्माईल (अ०स०) की क़ुरबानी पेश की थी | उसी याद में मुसलमान क़ुरबानी पेश करते हैं |
अल्लाह तआला का इरशाद –
وَلِكُلِّ أُمَّةٍۢ جَعَلْنَا مَنسَكًۭا لِّيَذْكُرُوا۟ ٱسْمَ ٱللَّهِ عَلَىٰ مَا رَزَقَهُم مِّنۢ بَهِيمَةِ ٱلْأَنْعَٰمِ
और हर उम्मत के लिए हमने क़ुरबानी के तरीक़े मुक़र्रर फरमाए हैं ताके वह उन चौपाये जानवरों पर अल्लाह का नाम लें जो अल्लाह ने उन्हें दे रखे हैं |
क़ुरबानी के मुताल्लिक हदीसें –
हज़रत सय्यदना ज़ैद बिन अरक़म (रज़ी०) फरमाते हैं के सहाबा (रज़ी०) ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह ! ये कुर्बानियां क्या हैं ? आप ने इरशाद फ़रमाया – तुम्हारे बाप इब्राहीम (अ०स०) की सुन्नत है | सहाबा (रज़ी०) ने अर्ज़ किया या रसुलअल्ल्लाह ! हमारे लिया क्या सवाब है ? फ़रमाया – हर बाल के बदले एक नेकी है | अर्ज़ किया और अदन में से ? फ़रमाया – उस के हर बाल के बदले भी एक नेकी है | (इब्ने माजा )
रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया – क़ुरबानी के दिनों से ज्यादा कोई चीज़ अल्लाह तआला को पसंद नहीं |
क़ुरबानी की फ़ज़ीलत –
(1) हुज़ूर (स०अ०) ने फ़रमाया – क़ुरबानी के जानवर के बदन में जितने बाल होते हैं, हर बाल के बदले में एक नेकी लिखी जाती है |
(2) क़ुरबानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले क़ुरबानी करने वाले की गुनाहें माफ़ हो जाती हैं
क़ुरबानी किस पर वाज़िब है ?
(1) मुसलमान होना
(2) आज़ाद हो –यानी गुलामों पर क़ुरबानी वाजिब नहीं
(3) मुकीम हो – यानी सफ़र(मुसाफिर) न हो
(4) साहिबे निसाब हो – सदक़ा ए फितर में जो साहिबे निसाब की शर्तें हैं वही शर्तें क़ुरबानी के लिए भी हैं | मुसलमान मर्द या औरत के पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी या उसकी क़ीमत या ज़रुरत के सामान से ज्यादा हो तो उस पर क़ुरबानी करना वाजिब है |
क़ुरबानी की दुआ और तरीका –
क़ुरबानी का जानवर क़िबला के तरफ़ लेटाकर दुआ पढ़े
إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّماَوَاتِ وَالأَرْضَ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفَاً وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِكِينَ . إِنَّ صَلاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلَّهِ رَبِّ العَالَمِينَ لاَ شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا أَوَّلُ المُسْلِمِينَ ، اللَّهُمَّ مِنْكَ وَلَكَ
मैंने अपना धयान सब तरफ से हटाकर सर उसी ज़ात के लिए कर दिया है जिसने आसमान और ज़मीन को बनाया है और मेरा शिर्क करने वालों से कोई ताल्लुक नहीं | बेशक मेरी नमाज़, मेरी कुर्बानी, मेरी ज़िन्दगी और मेरी मौत सिर्फ अल्लाह ही के लिए है | वह सारे जहानों का पालने वाला है, जिसका कोई साझी नहीं | मुझको उसी का हुक्म दिया गया है और मैं फरमाबरदारों में से पहला फरमाबरदार हूँ | ए अल्लाह ! यह क़ुरबानी आपकी ही तरफ से है और आपके ही लिए है |
फिर बिस्मिल्ल्लाह अल्लाह हु अकबर कहकर जिबह करें |
क़ुरबानी के चंद अहम मसाइल –
(1) क़ुरबानी करते वक़्त ज़बान से नियत और दुआ पढ़ना ज़रूरी नहीं है | अगर दिल में ख्याल कर लिया के मैं क़ुरबानी करता हु और ज़बान से सिर्फ बिस्मिल्लाह अल्लाह हु अकबर पढ़कर ज़िबह किया तो क़ुरबानी दुरुस्त हो गई |
(2) अगर क़ुरबानी का जानवर किहीं गुम हो गया और उसने दूसरी खरीद ली बाद में फिर वह जानवर मिल गया तो अगर क़ुरबानी करने वाला गरीब है तो एक ही जानवर की क़ुरबानी करे और अगर मालदार है तो दोनों की क़ुरबानी करनी चाहिए |
(3) सात आदमी बड़े जानवर (भैंस वगैरह ) में शरीक़ हुए तो गोश्त बाटते वक़्त ख़ूब ठीक – ठीक तौलकर बराबर तकसीम करें अगर कोई हिस्सा किसी को कम या ज्यादा हो गया तो वह सूद हो जायेगा |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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