بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है”
सुरह तकासुर फ़ज़ीलत –
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी०) से रिवायत है के रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया के – तुम में से कोई ये नहीं कर सकता के रोज़ाना एक हज़ार आयतें कुरआन पाक की पढ़ लिया करे ? सहाबा (रज़ी०) ने अर्ज़ किया हुज़ूर (स०अ०) ! किस में ये ताक़त है के रोज़ाना एक हज़ार आयतें पढ़े ? (यानी ये बात हमारी इस्ततात से बाहर है ), आप (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – क्या तुम से कोई इतना नहीं कर सकता के अल्हकुमुत-तकासुर पढ़ लिया करे |
तफ़सीर सुरह तकासुर (102) –
بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
(1) जयादती की चाहत ने तुम्हे गाफिल कर दिया
तफ़सीर –
हर वह चीज़ जिस की कसरत इंसान को महबूब हो और कसरत के हुसूल की कोशिश व खवाइश उसे अल्लाह के अहकाम और आखिरत से गाफ़िल कर दे | यहाँ अल्लाह तआला इंसान की कमजोरी को बयान कर रहा है, जिस में इंसानों की अक्सरियत हर दौर में मुब्तला रही है |
(2) यहाँ तक के तुम क़बर्स्तान जा पहुंचे
तफ़सीर –
इस का मतलब है के हुसूल कसरत के लिए मेहनत करते करते, तुम्हें मौत आ गई और तुम क़ब्रों में जा पहुंचे |
(3) हरगिज़ नहीं तुम अनक़रीब मालूम कर लोगे
तफ़सीर –
यानी तुम जिस तकासुर व तफाखर में हो – ये सही नहीं
(4) हरगिज़ नहीं फिर तुम्हें जल्द इल्म हो जायेगा
तफ़सीर –
उसका इनजाम अनक़रीब तुम जान लोगे, ये बतौर ताक़ीद दो मर्तबा फ़रमाया
(5) हरगिज़ नहीं अगर तुम यक़ीनी तौर पर जान लो
तफ़सीर –
मतलब है के अगर तुम उस गफ़लत का अंजाम इस तरह यक़ीनी तौर पर जान लो, जिस तरह दुनिया की किसी देखी भाली चीज़ का तुम्हे यकीन होता है तो तुम यकीनन उस तकासुर(ज़ादती की ख्वाइश ) व तफाखर में मुब्तला न हो |
(6) तो बेशक तुम जहन्नम देख लोगे
तफ़सीर –
यानी अल्लाह की क़सम तुम जहन्नम ज़रूर देखोगे यानी इसकी सज़ा भुकतोगे |
(7)और तुम उसे यकीन की आँख से देख लोगे
तफ़सीर –
यानी पहला देखना दूर से होगा, ये देखना करीब से होगा, इस लिए इसे एनल यकीन (जिसका यकीन मुशाहिदा ए एनी से हासिल होता है ) कहा गया है |
(8) फिर उस दिन तुम से ज़रुर बिल-ज़रूर नेमतों का सवाल होगा
तफ़सीर –
ये सवाल उन नेमतों के बारे में होगा, जो अल्लाह ने दुनिया में अता की होंगी | जैसे आँख, कान, दिल, दिमाग़, सेहत,माल इ दौलत वगैरह | बाज़ कहते हैं, ये सवाल सिर्फ़ काफिरों से होगा | बाज़ कहते हैं हर इंसान से ही होगा क्युंके महज़ सवाल मुस्तल्ज़म अज़ाब नहीं | जिन्होंने उन नेमतों का इस्तमाल अल्लाह की हिदायात के मुताबिक़ किया होगा, वह सवाल के बावज़ूद अज़ाब से महफूज़ रहेंगे | और जिन्होंने कुफ्र उन नेमतों का इर्ताकाब किया होगा वह धर लिए जायेंगे |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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