بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है”
औलाद की तरबियत –
औलाद की तरबियत करना माँ-बाप की अहम् ज़ोम्मेदारी है | ये बात भी काबिले एतेबार है के अगर घर की ख़वातीन या माँ दीनदार है तो इंशाअल्लाह बच्चे ज़रूर दीनदार होंगे क्यूंकि बच्चों की असल दर्सगाह माँ की गौद है | जैसा उसके घर का माहौल होगा तो बच्चे ज़रूर उसमे ढालेंगे अगर माँ-बाप ही नए माहौल के हों तो बच्चे का दीनदार होना मुश्किल है |
अल्लाह तआला का इरशाद –
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًۭا وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلَـٰٓئِكَةٌ غِلَاظٌۭ شِدَادٌۭ لَّا يَعْصُونَ ٱللَّهَ مَآ أَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ
इसके मुताल्लिक हदीस –
नबी करीम (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – मुसलमानों ! अपनी औलाद की तरबियत अच्छी तरह किया करो |
जिस के यहाँ औलाद पैदा हो उसके लिए ज़रूरी है के वह औलाद का नाम अच्छा रखे फिर उनकी अच्छी तरबियत करे |
औलाद बात नहीं मानती –
आजकल अक्सर माँ- बाप ये कहते हैं के मेरी औलाद बात नहीं मानती और नाफरमान है | क्या कभी गौर किया है के औलाद नाफरमान क्यों हुई, उसकी वजह ये है के –
(1) घर के माहौल से बच्चे मुतास्सिर होते हैं जैसा के अगर मिया बीवी में लड़ने झगड़ने का रोजाने का रूटीन है के कभी शौहर बीवी की नहीं मानता तो कभी बीवी शौहर की नहीं मानती, अब ये माहौल देखकर बच्चे बड़े होंगे तो उनका भी बात नहीं मानना क्यों अजीब बात नहीं |
(2) बच्चे की हर जिद पूरी करना के कोई भी खवाइश की तो फ़ौरन पूरा कर दी | बच्चे का जिद्दी बनना भी नाफ़रमानी की वजह है |
(3) बच्चे कोई भी नामुनासिब काम (मसलन चोरी ) करे तो उसकी ये हरकत छुपाते हैं या हंस कर टाल देना ये भी बच्चों को बागी बना देती है |
(4) बचपन से ही मोबाइल की आदत के टाइमपास हो जायेगा या बच्चे का दिल लगा रहेगा यानी घंटों बच्चे मोबाइल या टीवी में लगे रहते हैं |
अपने औलाद को आग से बचा लो –
उपर कुरआन मजीद की आयत में अल्लाह तआला ने ज़िक्र किया है अपने अहलो अयाल को आग से बचा लो, यानी जैसा के हम दुनिया की आग से अपनी औलाद को बचाते हैं उसी तरह हमहें उस आग के अज़ाब से भी बचना चाहिए जिसका इंधन इंसान हैं |
बहुत कम ही एसे माँ-बाप हैं जो कहते होंगे के बेटा जल्दी सो जा सुबह फज़र की नमाज़ में उठाना है बलके ये कहते हैं के जल्दी सो जा कल स्कूल जाना है | बच्चे को दुनिया की तालीम से मना नहीं बलके हमहें ज्यदा फ़िक्र दीनी तालीम की होनी चाहिए के बच्चा या बच्ची दीनदार बने गोया इसकी मेहनत शुरू से ही करनी की ज़रूरत है |
औलाद की तरबियत के चंद अहम् निसीहतें –
(1) जब बच्चा पैदा हो तो उसका कोई अच्छा सा नाम रखे (मसलन सहाबा के नाम वगैरह )
(2) रोजाना आपस में जमा होकर कुरआन की तालीम और चंद हदीसों का पढना |
(3) अगर बच्चा या बच्ची थोडा होशियार हो जाएं तो नमाज़ सिखाने की पाबंदी करना |
(4) हमारे प्यारे नबी (स०अ०) के अखलाक और सीरत बचपन से ही बच्चे को बताना (मसलन आप (स०अ०) सोना उठाना खाना वगैरह की तालीम )
(5) दुनिया की तालीम से ज्यादा अहमियत दीन की तालीम का है ये उनके दिलों में शरू से हो |
(6) बच्चे की सारी जिद्द पूरी न करना अलबत्त कुछ जिद्द ज़रूर पूरी करनी चाहिए |
(7) बच्चों के सामने झगड़ा या कोई लायनी बातें ना करना (घर का माहौल नेक अख्लाकी होनी चाहिए ताके बच्चों को शुरू से इसकी आदत हो )
(8) अगर बच्ची है तो बचपन से परदे का अह्तामाम करे ताके जब वह बड़ी हो तो पर्दा करने में को दिक्क़त न हो और वो परदे की आदि हो जाये |
(9) बच्चों को मोबाइल और टीवी से बिलकुल दूर रखना बहुत ज़रूरी है क्यूंकि बच्चों को बिगाड़ने का ये अहम् जरिया है |
(10) अपनी औलाद के लिए हमेशा अल्लाह तआला से अच्छे अखलाक और नेक बख्ती की दुआ करें |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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