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Maa baap ke Huqooq – माँ बाप के साथ हुस्ने सुलूक

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है

 

माँ-बाप (वालेदैन ) –

माँ-बाप अल्लाह तआला की एक बड़ी नेमत है, ख़ुशनसीब  है वो जो इस नेमत की क़द्र सही वक़्त पर करे नहीं तो कितनी औलादें माँ-बाप के मरने के बाद अफ़सोस करती है या खुद उनकी औलादें जब उनपर वैसा ही सुलूक करतीं है जैसा ये कभी अपने वालेदैन से करते थे |

अल्लाह तआला का इरशाद –

 

وَقَضٰى رَبُّكَ اَلَّا تَعۡبُدُوۡۤا اِلَّاۤ اِيَّاهُ وَبِالۡوَالِدَيۡنِ اِحۡسَانًا​ ؕ اِمَّا يَـبۡلُغَنَّ عِنۡدَكَ الۡكِبَرَ اَحَدُهُمَاۤ اَوۡ كِلٰهُمَا فَلَا تَقُلْ لَّهُمَاۤ اُفٍّ وَّلَا تَنۡهَرۡهُمَا وَقُلْ لَّهُمَا قَوۡلًا كَرِيۡمًا

और तेरा परवरदिगार साफ साफ़ हुक्म दे चुका है के तुम उसके सिवा किसी और की इबादत ना करना और माँ बाप के साथ अहसान करना | अगर तेरी मौजूदगी में उन में से एक या दोनों बुढ़ापे को पहुँच जाएं तो उनके आगे उफ़ तक ना कहना, न उन्हें डाट डपट करना बलके उनके साथ अदब व अहतराम के साथ बात –चीत करना (सुरह बनी-इस्राईल,आयत 23)

 

इसके मुताल्लिक चंद हदीस –

हज़रत अबू हुरैरह (रज़ी०) से रवायत है –एक शख्स ने हुज़ूर (स०अ०) से पूछा, या रसूलअल्लाह (स०अ०) मुझ पर खिदमत और हुस्न सुलूक का हक़ सबसे ज्यादा किसका है ? आप ने इरशाद फ़रमाया – तुम्हारी माँ का, फिर तुम्हारी माँ का, फिर तुम्हारी माँ का उसके बाद तुम्हारे बाप का और उसके बाद तुम्हारे करीबी रिश्तेदारों का फिर जो उनके बाद करीबी हों (सहीह मुस्लिम )

आप (स०अ०) ने फ़रमाया अपने माँ बाप के साथ नेकी करो ताकि तम्हारी औलाद भी तम्हारे साथ नेकी से पेश आएं|

 

वालेदैन के साथ हुस्ने सुलूक करना –

(1) अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में  माँ-बाप के साथ अच्छा सुलूक करने का हुक्म दिया और हुजुर पाक (स०अ०) ने माँ के पैरों के नीचे जन्नत और बाप को जन्नत का दरवाज़ा बतलाया है |

(2) अपने माँ – बाप को उफ्फ या हूं भी ना कहा करो और हमेशा नर्म और नीची आवाज़ से बात करो |

(3) एक हदीस से मालूम होता है के अगर बाप नाराज़ हो जाये तो गोया अल्लाह भी नाराज़ हो जाते हैं | और अगर बाप राज़ी है तो अल्लाह तआला भी राज़ी होते है |

(4) माँ-बाप की जयारत करना और माँ-बाप को देख कर मुस्कुराना इस अमल से अल्लाह रब्बुल इज्ज़त बन्दे के गुनाहों को माफ़ कर देते हैं |

(5) जब वालेदैन बुदापे को पुहुँच जाएं तो औलाद को चाहिए की उनकी खूब खिदमत करे हर सहूलत का ख़ास ख्याल करे और याद करे के कैसे उसके बचपन में जब हड्डियां कमज़ोर थी और खुद से कुछ न कर सकते थे तब माँ-बाप ने ही बड़े मुश्किल से पाला पोसा |

(6) अगर वालेदैन में से कोई काफिर है तो उसकी भी ख़िदमत और फरमाबरदारी  करना ज़रूरी है, हाँ अगर कुफ्र का हुक्म दे तो न माने |

(7) हदीस से ये बात भी मालूम होती है के अगर वालेदैन बीवी को छोड़ने का हुक्म दे तो छोड़ देना चाहिए |

(8) अगर वालेदैन का इंतकाल हो गया हो तो उनके लिए मगफिरत की दुआ करें इसाले सवाब करें और उसके दोस्त व अहबाब से हुस्ने सुलूक करें |

माँ बाप की खिदमत का सिला –

नबी करीम (स०अ०) जब जन्नत में तशरीफ ले गए तो जन्नत में कुरआन मजीद पढने की आवाज़ आई आप (स०अ०) ने फ़रमाया – ये कौन तिलावत कर रहा है तो फरिश्तों ने कहा नोमान बिन हरीसा, अपनी माँ की एसी खिदमत की के दुनिया में जब कुरआन की तिलावत करते हैं तो अल्लाह तआला जन्नत में उनकी तिलावत सुनाता है |

एक बार अल्लाह तआला ने मूसा (अ०स०) से फ़रमाया के जन्नत में आपका साथी एक फलां कसाई होगा तो हज़रत मूसा (अ०स०) ने उस कसाई का वो अमल पता करने के लिए उसके पास तशरीफ ले गए, देखा की सारा दिन वो कसाई अपने काम में मशगुल रहा | जब शाम हुई को थोडा गोश्त लिया और वहां से निकला, हज़रत मूसा (अ०स०) भी उसके हमराह हुए | कसाई ने घर पहुंचकर गोश्त बनाया फिर क़रीब में उसकी माँ लेटी थी उसको उठाकर बैठाया,खाना खिलाया और मुह पोछकर लेटाया | उसकी माँ कुछ बडबडा रही थी मूसा (अ०स०) ने पूछा ये तेरी माँ क्या बोल रही है, उस कसाई ने कहा, नासमझ माँ है बोल रही है के या अल्लाह ! जन्नत में मेरे बेटे का साथी मूसा को बनाना |   (अल्लाह हु अकबर)

 

माँ –बाप की नाफ़रमानी –

(1) माँ-बाप की नाफ़रमानी गुनाहे कबीरा है

(2) वालेदैन की नाफ़रमानी करने वाले की मफिरत शबे कद्र की रात में भी नहीं होती

(3) वालेदैन की नाफ़रमानी की सज़ा  दुनिया में भी मिलती हैं और आखिरत में आग का अज़ाब है |

(4) तीन आदमी एसे है जिनको अल्लाह तआला क़यामत के दिन देखेगा भी नहीं उनमे से एक शख्स माँ-बाप का नाफरमान भी होगा |

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     औलाद की तरबियत – औलाद की तरबियत करना माँ-बाप की अहम् ज़ोम्मेदारी है | ये बात भी काबिले एतेबार है के अगर घर की ख़वातीन या माँ दीनदार है तो इंशाअल्लाह बच्चे ज़रूर दीनदार होंगे क्यूंकि बच्चों की असल दर्सगाह माँ की गौद है | जैसा उसके घर का माहौल होगा तो बच्चे ज़रूर उसमे ढालेंगे अगर माँ-बाप ही नए माहौल के हों तो बच्चे का दीनदार होना मुश्किल है |   अल्लाह तआला का इरशाद – يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًۭا وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلَـٰٓئِكَةٌ غِلَاظٌۭ شِدَادٌۭ لَّا يَعْصُونَ ٱللَّهَ مَآ أَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ तर्जुमा – ए ईमान वालों ! अपने आप को और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिसका इंधन इंसान और पत्थर होंगे उसपर शख्त कड़े मिजाज़ के फरिश्तें मुक़र्रर हैं जो अल्लाह के किसी हुक्म में उसकी नाफ़रमानी नहीं करते, और वही करते हैं जिसका उन्हें हुक्म दिया जाता है | (सुरह तहरिम आयत 6) इसके मुताल्लिक हदीस – नबी करीम (स०अ०) ने इरश