Skip to main content

Jang e Badr – बदर की लड़ाई का बयान

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है

 

जंग ए बदर –

जंग ए बदर इस्लामी तारिख की एक अहम् जंग है, जिस जंग में मुसलमानों की तादात बहुत थोड़ी और कुफ्फार की तीन गुना जायेद थी मगर अल्लाह तआला  ने अपने फरिश्तों से इस जंग में मुसलमानों की मदद फरमाई और फतह हासिल हुई  |

 

जंग से पहले का हाल –

जब नबी करीम (स०अ०) हिजरत करके मक्के से मदीने तशरीफ़ लाए तो मक्का के कुफ्फार को बहुत नागवार गुज़रा और इस बात की कोशिश करने लगे के कैसे मुसलमानों से इन्तकाम लिया जाये | एक वजह यह भी थी के क़ुरैश के एक शख्स उमरू बिन ह्जरमी, मुसलमानों के हांथों मारा गया था और इसी का बहाना बनाकर कुफ्फारे मक्का जंग करने के लिए आमादा थे |

नबी करीम (स०अ०) तक ये खबर पहुंची के मक्के वालों का एक काफ्ला शाम से आ रहा है और मदीने के करीब से गुजरेगा तो आप (स०अ०) ने मक्के वालों पर एक किस्म का रौब कायम करने के लिए मुहाजरीन और अंसार की एक जमाआत को रवाना फ़रमाया के मक्का वालों के काफले को रोके | ये जमाअत जंग के इरादे से नहीं भेजी गई थी इसलिए कोई जंगी सामान नहीं रखी गई थी | किसी तरह इस जमाअत की रवानगी का मालूम उस काफिले को हो गई |

उस काफिले के अमीर अबू सुफियान (जो फतह मक्का के मौके पर मुसलमान हुए) थे | खबर पाते ही अबू सुफियान ने अपने काफिले को दुसरे रास्ते से मक्के की तरह बढ़े और साथ ही एक शख्स को मक्के के तरह तेज़ रफ़्तार से भेजा ताके कोई मदद मिल सके | मक्के में जब ये खबर मिली तो अबू जहल फ़ौरन एक हज़ार की फौज़ तैयार की और रवाना हुआ | इधर अबू सुफियान दुसरे रास्ते से अपने काफले के साथ मक्का पहुच गए और अबू जहल को खबर भेजी के वापस आ जाये लेकिन अपने लश्कर के खमंड और मुसलमानों के इंतकाम की वजह से वापस न हुआ और मदीने के तरफ बढ़ता रहा |

नबी करीम (स०अ०) का मशवरा –

जब नबी करीम (स०अ०) को इस बात की खबर हुए के कुफ्फारे मक्का अपने लश्कर के साथ मदीने की तरफ बढ़ रहे हैं, तो आप ने अंसार और मुहाजिरीन सहाबा (रज़ी०) के साथ मशवरा किया और राए मालूम की |

हज़रत अबू बकर सिद्दीक (रज़ी०),हज़रत उमर (रज़ी०) और मिकदार (रज़ी०) बड़ी ही बहादुरी और सुजाअत से जवाब दिया और कहा के –

हम उन बनी इसराइल की तरह नहीं हैं जिन्होंने मूसा (अ०स०) से कह दिया था के “ तू और तेरा रब दोनों जाकर लड़ो | हम तो यहीं बैठे तमाशा देखेंगे “

गोया के तमाम सहाबा (अंसार और मुहाजरीन ) जंग और कुफ्फर से मुकाबले के  लिए तैयार थे |

 

जंग में कुल लश्कर की तादात –

मुसलमान –

जंग में मुसलमानों की तादात बाज़ रिवायतों में 313 और बाज़ में 310 आया है | 2 घोड़े , 70 ऊंट और जंगी सामान  की तादात बहुत कम थी,जमाअत में कमज़ोर और ज़ईफ़ भी थे |

कुफ्फार –  

कुफारे मक्का की तादात तक़रीबन एक हज़ार थी  | 300 घोड़े, 700 ऊंट और लडाई में पेश आने वाले सारे चीजों से लैश थे |

 

आगाज़ ए जंग –

17  रमज़ान सन 2 हिजरी का दिन जब बदर के मैदान में जंग का आगाज़ हुआ | सहाबा (रज़ी०) की जमाअत भले ही कम थी लेकिन जोश व ख़रोश में कुफ्फार से कहीं ज्यादा थी |

नबी पाक (स०अ०) ने अल्लाह तआला से रोकर दुआ फरमाई –

”  इलाही ! अगर तूने इस छोटी सी जमाअत को हलाक़ कर दिया तो ज़मीन में तेरी इबादत करने वाला कोई ना रहेगा “

फिर आप (स०अ०) ने दो रकात नमाज़ पढी और झोपड़ी से  मुस्कुराते   हुए बहार आये और सहाबा (रज़ी०) से ख़िताब होकर फ़रमाया – कुफ्फार की फौज़ को शिक़स्त होगी और वह पीठ फ़ेर कर भाग जायेंगे और आपने ये हुक्म दिया के जंग में इब्तदा न करना |

जंग की शुरुवात इस तरह हुई के उत्बा व शैबा और वलीद बिन उत्बा निकल कर मैदान में आगे आये और ललकार कर मुसलमानों के तरफ् से तीन शख्स तलब किये | उन तीनो का मुकाबला करने के लिए अंसार के तीन सहाबी रवाना हुए मगर उत्बा ने  ये कहकर लड़ने से मना कर दिए के तुम मदीने वाले हो हम तो सिर्फ क़ुरैश (जो हिजरत करके आये हैं ) उन लोगों से ही लड़ेंगे |

 

उत्बा, शैबा और वलीद का क़त्ल – 

उत्बा की बात सुनकर नबी करीम (स०अ०) ने हुक्म दिया के उत्बा के मुकाबले के लिए हमज़ा बिन अब्दुल मुताल्लिब (रज़ी०) और शैबा के मुक़ाबले उबैदा बिन हर्श (रज़ी०) और वलीद के मुकाबले अली बिन अबी तालिब (रज़ी०) जाएं, चुनांचे ये हुक्म सुनते ही तीनो हज़रात मैदान में निकले |

मुकाबला शुरू हुआ, हज़रत अली (रज़ी०) ने उत्बा और वलीद दोनो बाप-बेटे को एक ही वार में क़त्ल कर दिया शैबा के मुकाबले में उबैदा (रज़ी०) ज़ख़्मी हुए,ये देख कर हज़रत अली (रज़ी०) आगे बढ़कर शैबा को भी क़त्ल कर दिया |

इसके बाद कुफ्फार के बाक़ी जमाअत भी हमलावर हो गई, जवाब में मुसलमानों की भी जमाअत उनपर टूट पडी | बाज़ रवायतों  में आता है के नबी करीम (स०अ०) ने सहाबा (रज़ी०) से फ़रमाया – जिब्रील (अ०स०) एक शख्स की शक्ल में बड़ी बहादुरी से लड़ रहे हैं |

कुछ ही देर में कुफ्फार के 70 से ज्यादा लोग क़त्ल हुए और ये सब देख कुफ्फार एक जमाअत वापस भाग खड़ी हुइ |

 

एक सहाबी (रज़ी०) की खवाइश –

एक सहाबी अमीर बिन अल – हमाम अंसारी (रज़ी०) नबी करीम (स०अ०) के पास खजूर खाते हुए आये और पूछा के अगर मैं कुफ्फार से लड़ता हुआ मारा जाउं तो फ़ौरन जन्नत में चला जाउंगा ? आप (स०अ०) ने फ़रमाया – हाँ ! वह उसी वक़्त अपने हाथ से बकिया खजूर फ़ेक कर तलवार खीच कर दुश्मनों पर जा पढ़े और लड़कर शहीद हुए |

 

अबू जहल का खात्मा –

एक नौउम्र अंसारी मुआज़ बिन उमरू (रज़ी०) का मुकाबला अचानक अबू जहल से हो गया | मुआज़ बिन उमरू (रज़ी०) ने मौका पाकर उसके पैर पर तलवार से एसा वार किया के उसका एक पावं कटकर अलग जा गिरा | ये देख अबू जहल का बेटा अपने बाप को बचाने आगे आया और मुआज़ (रज़ी०) को अख्मी कर दिया | इसके बाद अंसार के ही एक दुसरे नौ उम्र सहाबी (रज़ी०) ने अबू जहल के करीब  जा के अपने तलवार से एक एसी जर्ब लगाई के वह  लहूलुहान हो कर गिर पड़ा |

बाद मे जब मुसलमानों को फतह हासिल हुए तो आप (स०अ०) ने हुक्म दिया के अबु जहल की लाश तलाश करो तो हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसउद (रज़ी०) ने अबू जहल को तलाश करते हुए देखा के वह कहीं पड़ा है तो उसके सीने पर चढ़ गए और सर काटकर नबी करीम (स०अ०) के खिदमत में पेश किया |

 

जंग में शहादत –

जंग ए बदर में कुल 14 सहाबा (रज़ी०) शहीद हुए, जिनमे  6 मुहजरीन और 8 अंसार थे | शहीदों को वहीँ दफ़न किया गया |

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

पोस्ट को share ज़रूर करें

दुआ की गुज़ारिश

Comments

Popular posts from this blog

Islamic Quiz in Hindi Part -8 - इस्लामिक सवाल जवाब

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     इस्लामिक क्विज पार्ट – 8 इस्लामिक क्विज पार्ट -7  में कुछ और अहम  सवाल – जवाब हैं  , जो के  (Competitions Exam ) के लिए बहुत मददगार है और साथ ही इस्लामिक मालूमात में इजाफा भी होगा इंशा अल्लाह  |   इस पार्ट में  ” आसमानी किताबें “   के बारे में सवाब जवाब है |   सवाल – आसमानी किताबों की तादाद कितनी हैं ? जवाब – अल्लाह तआला ने अंबिया (अ०स०) पर कुल 104 किताबें (जिनमे 100 सहिफें और 4 किताबें हैं  ) नाज़िल फरमाई | सवाल – आसमानी किताबों का इनकार करने वाला कैसा है ? जवाब – आसमानी किताबों का इनकार करने वाला मुसलमान नहीं है | सवाल – 4 मशहूर आसमानी किताबों के नाम क्या हैं और किन नबियों पर नाजिल हुईं ? जवाब – (1) तौरात –हज़रत मूसा (अ०स०) पर  (2) ज़बूर – हज़रत दाऊद (अ०स०) पर (3) इंजील – हज़रत ईसा (अ०स०) पर  (4) कुरआन मजीद – हज़रत मुहम्मद (स०अ०) पर सवाल – 4 अंबियाओं के अलावा और कितने रसूलों पर किताबें (सईफें) नाजिल हुईं? जवाब – अल्लाह तआला ने 4 अन्बियों के आलावा और रसूलों पर भी किताबें (सईफे ) नाजिल फरम

Jawnar ke Huqooq in Hindi - जावरों के हुक़ुक़

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   जानवरों  के हुक़ूक़  – इस्लाम में  जानवरों के साथ कैसा  बरताव करना चाहिए,ये तफ्सील से बताया गया है | बेज़बान जानवर जो कुछ बोलते नहीं और  मुतालबा भी नहीं करते उसका ख्याल करना हमारे लिए ज़रूरी है | इसके मुताल्लिक चंद हदीसें – हजरत इब्ने उमर रज़ि और हज़रत अबू हुरैरह रजि दोनों ने हुजूर सल्ल का यह इर्शाद नकल किया कि एक औरत को इस पर अज़ाब किया गया कि उसने एक बिल्ली को बांध रखा था, जो भूख की वजह से मर गयी, न तो उसने उसको खाने को दिया न उसको छोड़ा कि वह जमीन के जानवरों (चूहे वगैरह) से अपना पेट भर लेती। हुजूरे अक्स सल्ल. से मुख्तलिफ अहादीस में मुख्तलिफ उन्वानात से यह मज़मून  नकल किया गया कि इन जानवारों के बारे में अल्लाह तआला से डरते रहा करो। गौर करने की  बात – जो लोग जानवरों को पालते हैं, उनकी जिम्मेदारी सख्त है कि वे बे-ज़बान जानवर अपनी जरूरियात को जाहिर भी नहीं कर सकते ऐसी हालत में उनके खाने पीने को खबरगीरी बहुत अहम और जरूरी है। इसमें बुख़्ल  से  काम लेना अपने आप को अज़ाब में मुब्तला करने के लिए तैय

Qissa Hazrat Yusuf a.s – हज़रत युसूफ अ०स० का क़िस्सा

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   हज़रत युसूफ (अ०स०) – मशहूर नबियों में हज़रत युसूफ (अ०स०) का नाम भी शामिल है, जिसका ज़िक्र कुरआन मजीद के (सुरह युसूफ) में तफ़सीर से आया है | हज़रत युसूफ (अ०स०) के किस्से को कुरआन मजीद में अहसानुल क़सस (सबसे अच्छा क़िस्सा ) कहा गया है | हज़रत युसूफ (अ०स०) एक एसे नबी हैं जिनके बाप,दादा,परदादा सब पैगम्बर थे | कुरआन मजीद में ज़िक्र – कुरआन मजीद की बारवी सूरत और पारह 12 और 13 में तफसील से हज़रत युसूफ (अ०स०) का ज़िक्र आया है | نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ أَحْسَنَ ٱلْقَصَصِ بِمَآ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانَ وَإِن كُنتَ مِن قَبْلِهِۦ لَمِنَ ٱلْغَـٰفِلِينَ तर्जुमा – (ए पैगम्बर ) हम ने तुम पर ये कुरआन जो वहीह के ज़रिये भेजा है इस के ज़रिये हम तुम्हे एक बेहतरीन वाकिया सुनाते हैं, जबकि तुम इस से पहले (वाक़िये) से बिलकुल बेखबर थे |   नबी पाक (स०अ०) का इरशाद – हमारे प्यारे नबी (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया “ करीम इब्ने करीम,इब्ने करीम “ यानी करीम का बेटा,करीम का बेटा |   हज़रत युसूफ (अ०स०) का बचपन और ख़वाब – हज़रत

Islamic Quiz in Hindi - इस्लामिक सवाल जवाब

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     इस्लामिक क्विज पार्ट – 7 इस्लामिक क्विज पार्ट -7  में कुछ और अहम  सवाल – जवाब हैं  , जो के  (Competitions Exam ) के लिए बहुत मददगार है और साथ ही इस्लामिक मालूमात में इजाफा भी होगा इंशा अल्लाह  |   इस पार्ट में  ” इस्लामी जंग (लड़ाई)   ”  के बारे में सवाब जवाब है |   सवाल – इस्लाम के मशहूर जंगें कौन कौन सी हुईं ? जवाब – (1) जंग ए बदर (2) जंग ए उहद (3) गजवा ए खंदक (4) सुलह हुदैबिया (5) फतह ए मक्का (6) गजवा ए हुनैन (7) गजवा ए तबूक (8) जंग ए खैबर सवाल – इस्लाम की सबसे पहली जंग कौन सी है ? जवाब – जंग ए बदर सवाल – जंग ए बदर में मुसलमानों की कुल तादात कितनी थीं ? जवाब – 313 सवाल – जंग ए बदर में कुफ्फार कितने थे ? जवाब – 1000 सवाल – जंग ए बदर की लडाई कब हुई ? जवाब – 17 रमज़ानुल मुबारक सन 2 हिजरी सवाल – अल्लाह तआला ने जंग ए बदर में किस तरह मुसलमानों की मदद फरमाई ? जवाब – नबी करीम (स०अ०) की दुआ पर अल्लाह तआला ने फरिश्तों का एक लश्कर भेज कर मुसलमानों की मदद फरमाई सवाल – जंग ए बदर किस तारिख को फत

Bina hisab ke Jannat mein jane wale - सीधा जन्नत या जहन्नुम

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   शीधा जन्नत या जहन्नुम – आखिरत के दिन कुछ लोग एसे भी होंगे जो बगैर हिसाब व किताब के जन्नत में और बिना हिसाब के दोज़ख में डाल दिए जायेंगे, उसे बाद हिसाब किताब का सिलसिला शुरू होगा |   बिना हिसाब के जन्नत में जाने वाले – हज़रत  अस्मा रज़ि० कहती हैं, मैंने हुज़ूर सल्ल० से सुना कि क़ियामत के दिन सारे आदमी एक जगह जमा होंगे और फ़रिश्ता जो भी आवाज़ देगा, सबको सुनायी देगी। उस वक़्त एलान होगा कहां हैं वे लोग जो राहत और तकलीफ में हर हाल में अल्लाह की हम्द करते थे। यह सुन कर एक जमाअत उठेगी और बगैर हिसाब-किताब के जन्नत में दाखिल हो जाएगी दूसरी मर्तबा – फिर एलान होगा, कहां हैं वे लोग जो रातों में इबादत में मश्गूल रहते थे और उनके पहलू बिस्तरों से दूर रहते थे। फिर एक जमाअत उठेगी और बगैर हिसाब-किताब के जन्नत में दाखिल हो जाएगी। तीसरी मर्तबा – फिर एलान होगा, कहाँ हैं वे लोग जिनको  तिजारत और खरीद व फ़रोख़्त अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल नहीं करती फिर एक जमाअत उठेगी और बगैर हिसाब के जन्नत में दाखिल हो जाएगी। चौ

shabe meraj ki Haqeeqat - शबे मेराज का सफर

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   शबे मेराज के बारे में – अल्लाह तआला ने नबी करीम (स०अ०)  को एक ख़ास सफर कराया के मक्का से मस्जिद ए अक्सा और फिर सात आसमानों से गुजर कर सिद्रातुल मूनताहा से होते हुए अपने पास बुलाया । यह आप (स०अ०)  के लिए खास एजाज व सआदत की बात है। इसके मुतल्लिक कुरान में जिक्र – سُبْحَـٰنَ ٱلَّذِىٓ أَسْرَىٰ بِعَبْدِهِۦ لَيْلًۭا مِّنَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ إِلَى ٱلْمَسْجِدِ ٱلْأَقْصَا ٱلَّذِى بَـٰرَكْنَا حَوْلَهُۥ لِنُرِيَهُۥ مِنْ ءَايَـٰتِنَآ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْبَصِيرُ ١ तर्जुमा – पाक है वहज़ात जो अपने बन्दे को रातों रात मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक ले गई जिसके माहौल पर हमने बरकतें नाज़िल की हैं | ताके हम उन्हें अपनी कुछ निशानियाँ देखाएं | बेशक वह हर बात सुनने वाली, हर चीज़ देखने वाली ज़ात है | मेराज के सफर का आगाज़ – नबी करीम (स०अ०)  हजरत उम्मे हानी के घर तसरीफ फरमा थे । अचानक आप ने देखा के ऊपर छत फटी और दो आदमी आए, आप को उठाया और आपका सीना चाक किया और सोने की तश्त पर कल्ब को रखा  फिर ज़म-ज़म

Kon log roza Tod sakte hain - रोजा तोड़ने की इजाज़त

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ” अल्लाह ताआला का बंदों पर अहसान – अल्लाह तआला अपने बंदों पर बड़ा शफीक वा मेहरबान है। उसने अपनी रहमत से इंसानों को ऐसी ही चीजों का मोकल्लफ बनाया है जि से बा-आसानी अंजाम दे सके। अल्लाह तआला ने अपनी मेहरबानी व रहमत से बाज ऐसे लोगों को रमजान में रोजा तोड़ने की इजाज़त दी है । जिनको कोई ऐसा शरई उज्र लाहिक हो जिसकी वजह से उनके लिए रोजा रखना दुश्वार हो | कुरान मजीद में इर्शदे बारी तआला  – अल्लाह तआला किसी जान को उसकी ताकत से ज्यादा तकलीफ नहीं देता (सुरह बकरह)   जिन लोगों को रोज़ा तोड़ने की इज़ाज़त है वो ये हैं – (1) बड़े बूढ़े और दाइमुल मरीज़ – बहुत बूढ़े मर्द, बूढ़ी औरतें और ऐसे दाइमूल मरीज लोग जिनके सेहतमंद होने की उम्मीद खत्म हो चुकी है। यह लोग अगर रोजा रखने में दुश्वारियां और परेशानी महसूस करें और यह अंदाजा हो कि आइंदा कभी भी उन्हें रोजा क़जा करने की ताकत हासिल ना हो सकेगी तो शरीयत ने ऐसे लोगों को रुखसत दी है कि वह रोजा ना रखें और हर रोजा के बदले एक मिस्कीन को खाना खिलाएं । उन्हें क़जा करने  की जरू

Khajur(Dates) ke Fayde – खजूर के फ़ायदे

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   खजूर (Dates) – अल्लाह तआला ने हमें बेशुमार नेमतें से नवाज़ा है, उन नेमतों में से खजूर एक अहम्  नेमत है जिसका ज़िक्र हदीसों में कसरत से आया है | नबी करीम (स०अ०) के ज़माने में कसरत से खजूर के बागात हुआ करतीं थीं | ये नबी करीम (स०अ०) की दुआओ का सिला है के उस ज़माने से आज भी अरब में कसरत से पुरे साल खजूरों की खेती होती है और कभी कमी ना आई |   इसके मुताल्लिक हदीस – हज़रत साद बिन अबी वक्कास (रज़ी०) से मय्सर है के वह अपने वालिद गरामी से रिवायत करते हैं के नबी (स०अ०) ने फ़रमाया – जिस शख्स ने निहार मुह अज्वा खजूर के सात दाने खाए उसको उस दिन में ना तो किसी ज़हर से और ना किसी जादू से नुक्सान पहुंचेगा | (मुस्लिम ,अबू दाऊद) उपर के हदीस में मसनदे अहमद ने इजाफा किया है के – और अगर उसने ये खजूरें शाम को खाई तो किसी चीज़ से सुबह तक कोई नुक्सान नहीं होगा |   खजूर के फायदे – (1) खजूर में ज्यादा मिकदार में पोटाशियम होता है जो के बदन की कमज़ोरी में बहुत फायदेमंद है | रोज़ाना एक खजूर का दूध के साथ खाना बदन की कमज़ोरी को

Surah Takasur tafseer – सुरह तकासुर तफ़सीर

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   सुरह तकासुर फ़ज़ीलत – हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी०) से रिवायत है के रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया के – तुम में से कोई ये नहीं कर सकता के रोज़ाना एक हज़ार आयतें कुरआन पाक की पढ़ लिया करे ? सहाबा (रज़ी०) ने अर्ज़ किया हुज़ूर (स०अ०) ! किस में ये ताक़त है के रोज़ाना एक हज़ार आयतें पढ़े ? (यानी ये बात हमारी इस्ततात से बाहर है ), आप (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – क्या तुम से कोई इतना नहीं कर सकता के अल्हकुमुत-तकासुर पढ़ लिया करे |   तफ़सीर सुरह तकासुर (102) – بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم (1) जयादती की चाहत ने तुम्हे गाफिल कर दिया तफ़सीर – हर वह चीज़ जिस की कसरत इंसान को महबूब हो और कसरत के हुसूल की कोशिश व खवाइश उसे अल्लाह के अहकाम और आखिरत से गाफ़िल कर दे | यहाँ अल्लाह तआला इंसान की कमजोरी को बयान कर रहा है, जिस में इंसानों की अक्सरियत हर दौर में मुब्तला रही है |   (2) यहाँ तक के तुम क़बर्स्तान जा पहुंचे तफ़सीर – इस का मतलब है के हुसूल कसरत के लिए मेहनत करते करते, तुम्हें मौत आ गई और तुम क़ब्रों में जा पहुंचे |

Aulad ki tarbiyat – औलाद की तरबियत कैसे करें

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     औलाद की तरबियत – औलाद की तरबियत करना माँ-बाप की अहम् ज़ोम्मेदारी है | ये बात भी काबिले एतेबार है के अगर घर की ख़वातीन या माँ दीनदार है तो इंशाअल्लाह बच्चे ज़रूर दीनदार होंगे क्यूंकि बच्चों की असल दर्सगाह माँ की गौद है | जैसा उसके घर का माहौल होगा तो बच्चे ज़रूर उसमे ढालेंगे अगर माँ-बाप ही नए माहौल के हों तो बच्चे का दीनदार होना मुश्किल है |   अल्लाह तआला का इरशाद – يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًۭا وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلَـٰٓئِكَةٌ غِلَاظٌۭ شِدَادٌۭ لَّا يَعْصُونَ ٱللَّهَ مَآ أَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ तर्जुमा – ए ईमान वालों ! अपने आप को और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिसका इंधन इंसान और पत्थर होंगे उसपर शख्त कड़े मिजाज़ के फरिश्तें मुक़र्रर हैं जो अल्लाह के किसी हुक्म में उसकी नाफ़रमानी नहीं करते, और वही करते हैं जिसका उन्हें हुक्म दिया जाता है | (सुरह तहरिम आयत 6) इसके मुताल्लिक हदीस – नबी करीम (स०अ०) ने इरश