Ramzan ki fazilat – रमज़ान के महीने में क्या होता है
بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
रमज़ान करीम –
रमज़ान का महीना बाकी महीनों का सरदार है | जिसमे हर नेकी का अज्र व सवाब 70 गुना बढ़ जाता है | हर अक़लमंद के लिए ज़रूरी है के रमजान का महीने पाए तो उसकी कद्र करे और बड़े पैमाने पर कुरआन की तिलावत, ज़िक्र व अज़कार में मशगुल रहे |
रमजान के मुताल्लिक हदीस –
हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह (रज़ी०) रिवायत करते हैं के एक अरबी जिसके के बाल उलझे हुए थे. रसूल (स०अ०) की खिदमत में हाजिर हुआ और नमाज़, ज़कात और रमज़ान के रोजों के बारे में सवाल किया, आप (स०अ०) ने रोज़े वाले के जवाब में इरशाद फरमाए – अल्लाह ने माहे रमजान के रोज़े हमपर फ़र्ज़ किये हैं | (बुख़ारी)
हज़रत अबू हुरैरह (रज़ी०) रिवायत करते हैं के रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – रोज़ा गुनाहों के लिए ढाल है | बिना बरे न तो फहश काम किया जाये और न जहालत की बात, अगर कोई शख्स रोजेदारों से झगड़े या गाली दे तो कह दे – मैं रोज़े से हूँ | रोज़ेदार के मुह की बू अल्लाह के नज़दीक मुश्क की खुशबू से बेहतर है, वह खाना पीना और मर्गुबात मेरे लिए छोड़ता है और मजीद अल्लाह फरमाता है – रोज़ा मेरे लिए है और मैं ही उसका सिला देता हूँ और हर नेकी पर 10 गुना सवाब मिलता है ( बुख़ारी )
रमज़ान के महीने की फ़ज़ीलतें –
रमज़ान का मुबारक महीना शुरू होते ही अल्लाह तआला का बेशुमार इनामात होता है, उनमे से चंद ये हैं –
(1) जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं |
(2) शैयातीन क़ैद कर दिए जाते हैं |
(3) हर शब को एक मुनादी आवाज़ लगाता है के – ए खैर के चाहने वाले आगे बढ़ो और शर का इरादा करने वाले पीछे हटो |
(4) अल्लाह तआला इस माहे मुबारक की बरकत से बे-हिसाब लोगों को दोज़ख से खलासी नसीब फरमाते हैं |
(5) इस माह में एक रात आयसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है |
(6) इस महीने में नफ्ल काम का अज्र फ़र्ज़ के बराबर और फ़र्ज़ का सवाब 70 फर्जों के बक़द्र अता किया जाता है |
(7) इस महीने में मोमिन का रिज्क बढ़ा दिया जाता है |
(8) इस महीने में पहला अशरा रहमत का, दूसरा अशरा मगफिरत का और आखरी अशरा दोज़ख से छुटकारे का जरिया है |
(9) इस महीने की आखरी रात में अल्लाह तआला उम्मते मुहम्मदिया (स०अ०) के रोज़ेदारों के लिए मगफिरत का ऐलान फरमाते हैं |
(10) हर शब्ओ रोज़ में मुसलमान की एक दुआ ज़रूर कुबूल होती है |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
पोस्ट को share ज़रूर करें
दुआ की गुज़ारिश
Comments
Post a Comment