Shahi Muslim Hadeesein – इमाम मुस्लिम की लिखी हदीसें
بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
इमाम मुस्लिम –
इमाम मुस्लिम 202 हिज़री (बाज़ के मुताबिक 204 हिज़री) में पैदा हुए |आप का नाम मुस्लिम इब्न अल-हज्जाज था, ईरान के ख़ुरासान में नेशापुर शहर के रहने वाले थे | आप एक बड़े मुहद्दिस में से थे और आप की सबसे मशहूर किताब “ सहीह मुस्लिम “ है |
सहीह मुस्लिम किताब के बारे में –
सहीह मुस्लिम क़िताब में तकरिबान 3 लाख़ हादसों से चुनकर जमा किया गया है | इमाम मुस्लिम (र०) ने अपनी किताब सहीह मुस्लिम में सिर्फ उन हदीसों को जगह दी है जिसके रावी इमाम मुस्लिम से लेकर नबी करीम (स०अ०) तक, हर वक़्त और हर तबके में कम से कम दो शख्स रहे हों यानी हदीस को कम से कम दो सहाबा (रज़ी०) ने और उनसे ताबईन ने और फिर उनसे तबे – ताबईन ने यहाँ तक की इमाम मुस्लिम (र०) से दो रिवायत करने वालों ने रिवायत की हो | सहीह मुस्लिम की रिवायतों की तादात, दुहराई गई हदीसों को कम करने के बाद 4 हज़ार है |
सहीह मुस्लिम हदीसें –
कालिमा तय्यब –
हजरत उमर (रज़ी०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०) ने इरशाद फरमाया खत्ता ब के बेटे जाओ, लोगों में यह एलान कर दो कि जन्नत में सिर्फ ईमान वाले ही दाखिल होंगे।
हजरत अबू हुरैरह (रज़ी०) फ़रमाते हैं, चन्द सहाबा (रज़ी०) रसूलुल्लाह (स०अ०) की खिदमत में हाजिर हुए और अर्ज किया – हमारे दिलों में बाज ऐसे ख्यालात आते हैं कि उनको जुबान पर लाना हम बहुत बुरा समझते हैं। रसूलुल्लाह (स०अ०) ने दरयाफ्त फरमाया : क्या वाक़ई तुम उन ख्यालात को जुबान पर लाना बुरा समझते हो? अर्ज़ किया: जी हां ! आप ने इर्शाद फरमाया – यही तो ईमान है।
हजरत उस्मान (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – जिस शख्स की मौत इस हाल में आए कि वह यकीन के साथ जानता हो कि अल्लाह तआला के सिवा कोई माबूद नहीं, वह जन्नत में दाखिल होगा।
हजरत इतबान बिन मालिक(रज़ी०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०) ने इशाद फ़रमाया – ऐसा नहीं हो सकता कि कोई शख्स इस बात की गवाही दे कि अल्लाह तआला के सिवा कोई माबूद नहीं और मैं (मुहम्मद ) अल्लाह तआला का रसूल हूं, फिर वह जहन्नम में दाखिल हो या दोजख की आग उसको खाए)
हज़रत अबू मूसा अशअरी (रज़ी०) रिवायत फ़रमाते हैं कि नबी करीम (स०अ०) ने एक मौके पर हमें पांच बातें इर्शाद फ़रमाई: 1. अल्लाह तआला न सोते हैं और सोना उनकी शान के मुनासिब हैं 2. रोजी को कम और कुशादा फरमाते हैं, 3. उनके पास रात के आमाल दिन से पहले, 4. और दिन के आमाल रात से पहले पहुंच जाते हैं, 5. (उनके और मख्लूक के दर्मियान) परदा उनका नूर है अगर वे यह पर्दा उठा दें तो जहां तक मखलूक की नजर जाए उनकी जात के अनवार सबको जला डालें।
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ी०) से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह (स०अ०) को यह इर्शाद फ़रमाते हुए सुना – जो शख्स अल्लाह तआला से इस हाल में मिले कि उसके साथ किसी को शरीक न ठहराता हो, वह जन्नत में दाखिल होगा और जो शख्स अल्लाह तआला से इस हाल में मिले कि वह उसके साथ किसी को शरीक ठहराता हो, वह दोजख में दाखिल होगा।
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर बिन आस (रज़ी०) फ्रमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह (स०अ०) को यह इर्शाद फ़रमाते हुए सुना – अल्लाह तआला ने जमीन व आसमान बनाने से पच्चास हजार साल पहले तमाम मख्लूकात की तकदीरें लिख दी, उस वक्त अल्लाह तआला का अर्श पानी पर था।
हज़रत अनस (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – क़यामत उस वक़्त तक नहीं आएगी, जब तक कि (एसा बुरा वक़्त न आ जाए की) दुनिया में अल्लाह – अल्लाह बिलकूल न कहा जाये | एक और हदीस में इस तरह है की किसी एसे शख्स के होते हुए कियामत कायम नहीं होगी जो अलाह – अल्लाह कहता हो
हज़रत अब्दुल्लाह (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – क़यामत बदतरीन आदमियों पर ही कायम होगी
नमाज़ –
हज़रत काब बिन उजरा(रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – नमाज़ के बाद पढ़े जाने वाले चंद कलिमे एसे हैं जिनका पढने वाला कभी महरूम नहीं होता | वे कलिमे हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद 33 मर्तबा सुबहानअल्लाह, 33 बार अल्हमदूलिललाह और 34 मर्तबा अल्लाह हु अकबर है |
हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रज़ी०) फरमाते हैं, मैंने रसूल अल्लाह (स०अ०) को यह इरशाद फरमाते हुए सुना – जो शख्स कामिल वजू करता है, फिर फ़र्ज़ नामाज के लिए चल कर जाता है और नमाज़ जमाअत के साथ मस्जिद में अदा करता है, तो अल्लाह तआला उसको गुनाहों को माफ़ फरमा देते हैं |
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – जमाअत की नमाज़ अकेले नमाज़ से अज्र व सवाब में 27 दर्जे ज्यादा है |
हज़रत आइशा (रज़ी०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०) ने फज्र की दो रकअत सुन्नतों के बारे में इरशाद फरमाए – ये दो रकअतें मुझे सारी दुनिया से ज्यादा महबूब है |
हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद माजिनी (रज़ी०) फरमाते हैं कि रसूल अल्लाह (स०अ०) बारिश की दुआ मांगने के लिए ईदगाह तसरीफ ले गए, और आप (स०अ०) ने क़िबला की तरफ़ रुख करके अपनी चादर मुबारक को उल्टा (यह गोया फ़ाल थी कि अल्लाह तआला हमारा हाल इस तरह बदल दें )
इल्म और ज़िक्र –
हज़रत ज़ैद बिन अरकम (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) यह दुआ किया करते थे – अल्लाहुम-म इन्नी अऊज़ु बि-क मिन इल्मिल ला य्न्फ़ऊ वमिन कल्बिल्ला याख्शऊ वमिन नफिसल्ला तशबऊ व मिन दावातिल युस्तजाबू लहा० (या अल्लाह ! मैं आपसे पनाह मांगता हूँ एसे इल्म से जो नफा न दे और एसे दिल से जो न डरे और एसे नफ्स से जो सैर न हो और एसी दुआ से जो कुबूल न हो )
हज़रत उमर (रज़ी०) फरमाते हैं कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – अल्लाह तआला इस कुरआन शरीफ़ की वजह से बहुत से लोगों के मर्तबे को बुलंद फरमाते हैं और बहुत सों के मर्तबे को घटाते हैं, यानी जो लोग इस पर अमल करते हैं अल्लाह तआला दुनिया व आखिरत में इज्ज़त अता फरमाते हैं और जो लोग इसपर अमल नहीं करते, अल्लाह तआला उनको ज़लील करते हैं |
हज़रत अबू मूसा (रज़ी०) रिवायत करते हैं कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने उनसे इरशाद फ़रमाया – अगर तुम मुझे गुज़िश्ता रात देख लेते जब मैं तुम्हारा कुरआन तवज्जोह से सुन रहा था, (तो यकीनन ख़ुश होते ) तुमको हज़रत दाऊद (अ०स०) की कुश इल्हानी से हिस्सा मिला है |
हज़रत अबूदर्दा (रज़ी०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – जिसने सुरह – कहफ़ की शुरू की दस आयतें याद कर लीं वह दज्जाल के फितने से महफूज़ हो गया और एक रिवायत में सुरह – कहफ़ की आखरी दस आयतों के याद करने का ज़िक्र है |
हज़रत अबू हुरैरह औरहज़रत अबू सईद ख़ुदरी (रज़ी०) दोनों हज़रात इस बात की गवाही देते हैं कि नबी करीम (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – जो जमाअत अल्लाह तआला के ज़िक्र में मशगुल हो, फ़रिश्ते उस जमाअत को घेर लेते हैं, रहमत उनको ढांप लेती है, सकिनत उनपर नाजिल होती है और अल्लाह तआला उनका तज़किरा फरिश्तों की मज्लिम में फरमाते हैं |
हरत अगरर (रज़ी०) रिवायत करते हैं कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – लोगों ! अल्लाह तआला के सामने तौबा किया करो, इसलिए कि मैं खुद दिन में सौ मर्तबा अल्लाह तआला के सामने तौबा करता हूँ |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुअरिश
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