Najasat ka bayan hindi - नजासत के अहम् मसाइल
بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
नजासत क्या है ?
नजासत के माअनी गंदगी के हैं, इंसानी के जिस्म से निकलने वाली गंदगी जैसे पेशाब पाखाना वगैरह सब निजासत कहलाती हैं |
नजासत की किस्में –
नजासत की दो किस्में हैं –
(1) नजासत ए गलिज़ा –
एसी नजासत जो सख्त हो यानी अगर थोड़ी सी भी लग जाये, तब भी धोने का हुक्म है |
आदमी का खून या पाखाना – पेशाब और मनी का कतरा और शराब, खिंजीर का मांस और हड्डी, कुत्ते – बिल्ली का पखाना – पेशाब, घोड़े – गधे या खच्चर की लीद, गाए – बैल – भैस का गोबर, मुर्गी – बत्तख की बीट और सब हराम जानवरों का पेशाब – पखाना वगैरह, ये सब नजसते गलिज़ा है |
(2) नजासत ए खाफ़िफा –
एसी नजासत जो कम और हलकी हो, जैसे के छोटे बच्चे या दूध पीते बच्चे का पेशाब – पखाना, हराम परिंदों की बीट और हलाल जानवरों का पेशाब, जैसे बकरी वगैरह सब नजस्ते खाफ़िफा है |
नजासत के मुताल्लिक चंद मसाइल –
(1) नजासते गलीजा में से अगर पतली और बहने वाली चीज कपड़े या बदन में लग जाये, तो अगर फैलाव में रुपए के बराबर या उससे कम हो, तो माफ़ है, उसको धोये बर्गर अगर नमाज पढ़ ले तो नमाज हो जायेगी, लेकिन न धोना और इसी तरह नमाज पढ़ते रहना मकरूह और बुरा है और अगर रुपए से ज्यादा हो तो वह माफ़ नहीं, बग़ैर उसके घोए नमाज न होगी और अगर नजासते गलीजा में से गाढ़ी चीज़ लग जाये, जैसे पाखाना और मुरगी वगैरह की बीट, तो अगर वज़न में साढ़े चार माशा या उससे कम हो, तो बे-धोये हुए नमाज दुरुस्त है और अगर उससे ज्यादा लग जाये, तो बे धोये नमाज दुरुस्त नहीं है ।
(2) अगर नजासते खफीफा कपड़े या बदन में लग जाये, तो जिस हिस्से में लगी है, अगर उसके चौथाई से कम हो, तो माफ है और अगर पूरा चौथाई या उससे ज्यादा हो, तो माफ नहीं यानी आस्तीन में लगी है, तो आस्तीन की चौथाई से कम हो और अगर कली में लगी है तो उसकी चौथाई से कम हो, अगर दोपट्टे में लगी है तो उसकी चौथाई से कम हो तब माफ है। इसी तरह अगर नजासते खफीफा हाथ में भरी है, तो हाथ की चौथाई से कम हो तो माफ है। इसी तरह अगर टांग में लग जाये, तो उसकी चौधाई से कम हो, तब माफ है, मतलब यह है कि जिस अंग में लगे, उसकी चौथाई से कम हो और अगर पूरा चौथाई हो, तो माफ़ नहीं, उसका धोना वाजिब है, यानी बे-धोये हुए नमाज दुरूस्त नहीं।
(3) अगर पेशाब की छीटें सूई की नोक के बराबर पड़ जायें कि देखने में दिखाई न दें, तो इसका कुछ हरज नहीं, धोना वाजिब नहीं है।
(4) अगर नजासत ऐसी चीज़ में लगी है, जिसको निचोड़ नहीं सकती, जैसे तख्त, चटाई, जेवर, मिट्टी या चीनी के बरतन बोतल, जूता वगैरह, तो उसके पाक करने का तरीका यह है कि एक बार घो कर ठहर जाये। जब पानी टपकना बंद हो जाये, फिर घोये, फिर जब पानी टपकना रूके, तब फिर घोये। इसी तरह तीन बार धोये, तो वह चीज़ पाक हो जायेगी।
(5) कपड़ा और बदन सिर्फ धोने ही से पाक होता है, चाहे दलदार नजासत लगे या बादल की, किसी और तरह पाक नहीं होता।
(6) आईने का शीशा और छुरी, चाकू, चांदी-सोने के जेवरात, फूल, तांबे, लोहे, गिलट, शीशे वगैरह की चीजें अगर नजिस हो जायें, तो खूब पोछ डालने और रगड़ डालने या मिट्टी से मांझ डालने से पाक हो जाती हैं, लेकिन अगर नक्शी चीजें हो, तो बे-घोये पाक न होंगी।
(7) जमीन पर नजासत पड़ गई, फिर ऐसी सूख गई कि नजासत का निशान बिल्कुल जाता रहा, न तो नजासत का धब्बा है, न बदबू आती है, तो इस तरह सूख जाने से ज़मीन पाक हो जाती है, लेकिन ऐसी ज़मीन पर तयम्मुम दुरूस्त नहीं, हां, नमाज़ पढ़ना दुरूस्त है। जो ईंटें या पत्थर चूना या गारे से जमीन में खूब जमा दिये गये हों कि बे-खोदे जमीन से अलग न हो सकें, उनका भी यही हुक्म है कि सूख जाने और नलासत का निशान न रहने से पाक हो जायेंगे।
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुअरिश
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