Skip to main content

Huzur s.a.w ki biwiyan – नबी (स०अ०) की बीवियों का बयान

 

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है

 

नबी करीम (स०अ०) की बीवियां –

नबी करीम (स०अ०) की बीवियों के बारे में जानना हमारे लिए ज़रूरी है के आप (स०अ०) का अपनी बीवियों के साथ कैसा मामला था |

मुहद्दीसीन और मुवर्रिखींन का इत्तिफाक़ है के आप (स०अ०) का निकाह ग्यारह औरतों से हुआ | इंशाअल्लाह बरी बरी उनका ज़िक्र निचे बयान होगा |

 

आप (स०अ०) की ग्यारह बीवियां –
(1) उम्मुल मुमिनीन हज़रत ख़दीजा (रज़ी०) –

नबी करीम (स०अ०) का सबसे पहला निकाह हज़रत ख़दीजा (रज़ी०) से हुआ, जो बेवा थीं | उस वक़्त हुजुर (स०अ०) की उम्र शरीफ़ 25 साल की थी और हज़रत ख़दीजा (रज़ी०) की उम्र 40 साल थी | बाज़ कौल के मुताबिक हज़रत ख़दीजा (रज़ी०) का पहले दो शख्ससों से निकाह हुई थी और उनसे औलादें भी थीं |

हुजुर (स०अ०) को हज़रत ख़दीजा (रज़ी०) से बेहद मुहब्बत थी, उनकी ज़िन्दगी में कोई दूसरा निकाह नहीं किया | 25 साल तक आप (स०अ०) के निकाह में रहीं और 65 साल के उम्र में आप ने इंतकाल फ़रमाया | उनके इंतकाल पर हुजुर (स०अ०) बेहद ग़मज़दा हुए, आप (स०अ०) ने खुद कब्र में उतरकर उनको दफ़न फ़रमाया |

 

(2) उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा (रज़ी०) –

हज़रत आईशा (रज़ी०) से निकाह शव्वाल में हुआ, उस वक़्त आप (रज़ी०) की उम्र 6 साल की थी | हुजुर (स०अ०) बीवियों में यहीं सिर्फ एक एसी हैं, जिनसे कुंवारेपन में निकाह हुआ बाकी सब से बेवा की हालत में हुआ | नबी करीम (स०अ०) के नबूवत मिलने के 4 साल बाद हज़रत आईशा (रज़ी०) पैदा हुईं | जब 9 साल की हुईं तो आप की रुखसती हुई | आप (स०अ०) की चाहिती बीवी थी और आप (स०अ०) को उनसे बहुत मुहब्बत थी |

हज़रत आईशा (रज़ी०) जब 18 साल की थीं, तब नबी करीम (स०अ०) ने इंतकाल फ़रमाया | 66 साल की उम्र में 17 रमज़ान, 57 हिजरी उनका विसाल हुआ | जन्नतुल बाकी में दफ़न की गयीं |

 

(3) उम्मुल मोमिनीन हज़रत सौदा (रज़ी०) –

हज़रत सौदा (रज़ी०) का भी निकाह शव्वाल के महीने में हुई थी, इसमें इखतलाफ है की हज़रत आईशा और हज़रत सौदा (रज़ी०) में से किनका निकाह पहले हुआ लेकिन बाज़ मुवार्रिखींन ने हज़रत आईशा (रज़ी०) और बाज़ ने हज़रत सौदा (रज़ी०) का पहले बताया है |

हज़रत सौदा (रज़ी०) भी बेवा थी | पहले से अपने चचाजाद भाई सकरान बिन अम्र के निकाह में थीं | जब पहले खाविंद का इंतकाल हुआ तो कुछ दिनों बाद उनका निकाह आप (स०अ०) से हुआ | नबी करीम (स०अ०) के साथ कसरत से नमाज़ पढ़ा करती थी |

हज़रत सौदा (रज़ी०) का इंतकाल 54 या 55 हिजरी और बाज़ ने लिखा है के हज़रत उमर (रज़ी०) के आखरी ज़माना ए खिलाफ़त में वफ़ात पाईं |

नबी करीम (स०अ०) ने पहले जो तीन निकाह कीं वो सब हिज़रत से पहले की हैं ,इसके बाद जितने निकाह हुए हैं वह हिजरत के बाद हुईं

 

(4) उम्मुल मोमिनीन हज़रत हफ्सा (रज़ी०) –

हज़रत आईशा (रज़ी०) के बाद हज़रत उमर (रज़ी०) की शहबज़ादी, हज़रत हफ्सा (रज़ी०) से आप (स०अ०) ने निकाह फ़रमाया | नबूवत के पांच साल पहले मक्का में पैदा हुई थीं | हज़रत हफ्सा (रज़ी०) का पहला निकाह मक्का में ही ख़ुनैस बिन हुजैफा (रज़ी०) से हुआ | ख़ुनैस बिन हुजैफा (रज़ी०), बद्र या उहद की लड़ाई में एसा जखम आया  के अच्छे न हुए और इंतकाल फरमा गए  | फिर आप (स०अ०) ने 2 या 3 हिजरी को हफ्सा (रज़ी०) से निकाह फ़रमाया |

हज़रत हफ्सा (रज़ी०) बड़ी आबिदा जाहिदा थीं | रात को अक्सर जागती थीं और कसरत से रोज़ा रखा करतीं थीं | किसी वजह से हुजुर (स०अ०) ने उनको एक तलाक भी दी थी, जिसकी वजह से हज़रत उमर (रज़ी०) को बहुत रंज हुआ | हज़रत जिब्रील (अ०स०) तशरीफ लाए और अर्ज़ किया के अल्लाह जल्ल शानहू का इरशाद है के हफ्सा (रज़ी०) से रुजुह कर लें | ये बड़ी शब् – बेदार और कसरत से रोज़ा रखने वाली हैं | इसलिए रसूल अल्लाह (स०अ०) ने रुजुह कर लिया |

जमादुल ऊला में सन 45 हिजरी में, जबकि उनकी उम्र 63 साल थी तो मदीना में इंतकाल फ़रमाया |

 

(5) उम्मुल मोमिनीन हज़रत ज़ैनब बीनते खुजैमा –

हफ्सा (रज़ी०) के बाद हुजुर (स०अ०) का निकाह हज़रत जैनब (रज़ी०) से हुआ | हज़रत  ज़ैनब (रज़ी०) खुजैमा की बेटी थीं | पहले उनका निकाह अब्दुल्लाह बिन जहश (रज़ी०) से हुआ, जब गजवा ए उहद में शहीद हुए तो हुजुर (स०अ०) ने निकाह किया | हुज़ूर (स०अ०) की बीवियों में हज़रत ख़दीजा (रज़ी०) और हज़रत ज़ैनब (रज़ी०) दो ही बीवियां एसी हैं, जिनका विसाल हुजुर (स०अ०) के सामने हुआ | बाकी 9 हुजुर (स०अ०) के विसाल के वक़्त जिंदा थीं |

हज़रत ज़ैनब (रज़ी०) बड़ी सखी थीं, इसी वजह से इनका नाम इस्लाम से पहले भी उम्मुल मसाकीन यानी मिसकीनों की माँ था | हज़रत ज़ैनब (रज़ी०) 8 महीने हुजुर (स०अ०) के निकाह में रहीं और रबीउल आखिर में सन 4 हिजरी में इंतकाल फ़रमाया |

 

(6) उम्मुल मुमिनीन हज़रत उम्मे सलमा (रज़ी०) –

हज़रत ज़ैनब बीनते खुजैमा (रज़ी०) के बाद हुजुर (स०अ०) का निकाह हज़रत उम्मे सलमा (रज़ी०) से हुआ | हज़रत उम्मे सलमा (रज़ी०) अबू – उमय्या की बेटी थीं | आप (रज़ी०) का पहला निकाह अपने चचाज़ाद भाई अबू – सलमा (रज़ी०) से हुआ, जिनका नाम अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद (रज़ी०) था |

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद (रज़ी०) उहद की लड़ाई में एक एक जख्म आ गया था, जिसके वजह से बहुत तकलीफ उठाई | इसके बाद जमादी उल आखिर  महीने में सन 4 हिजरी को इंतकाल किया | हुजुर (स०अ०) ने हज़रत सलमा (रज़ी०) से निकाह की खवाइश ज़ाहिर फरमाई और आखरी शव्वाल सन 4 हिजरी में आप (स०अ०) ने निकाह फ़रमाया |

उम्महातुल मोमिनीन में सबसे आखिर में हज़रत उम्मे सलमा (रज़ी०) का इंतकाल हुआ | इंतकाल के वक़्त सन 59 हिजरी जब हज़रत उम्मे सलमा (रज़ी०) की उम्र 84 साल थी |

 

(7) उम्मुल मुमिनीन ज़ैनब बीनते जहश (रज़ी०) –

हज़रत सलमा (रज़ी०) के बाद हुजुर (स०अ०) का निकाह ज़ैनब बीनते जहश (रज़ी०) से हुआ | हज़रत ज़ैनब बीनते जहश, आप (स०अ०) की फुफी-जात बहन थी | हुजुर (स०अ०) ने उनका पहला निकाह हज़रत ज़ैद बिन हारिसा (रज़ी०) से किया था | ज़ैद (रज़ी०) के तलाक देने के बाद अल्लाह जल्ले शानुहू ने खुद निकाह  हुजुर (स०अ०) से कर दिया, जिसका क़िस्सा सुरह – अहज़ाब में ज़िक्र है |

हज़रत ज़ैनब (रज़ी०) बड़ी सखी थीं और बड़ी मेहनती, जो अपने हाथ से मेहनत करतीं और जो हासिल होता वह सदक़ा कर देतीं | उनके बारे में हुजुर (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया की मुझसे सबसे पहले मरने के बाद वह मिलेगी जिसका हाथ लम्बा होगा | (लम्बा हाथ से मुराद सदक़ा की कसरत थी )

हज़रत ज़ैनब बीनते जहश (रज़ी०) का इंतकाल सन 20 हिजरी में(50 साल की उम्र में) हुआ | हज़रत उमर (रज़ी०) ने नमाज़े जनाज़ा पढाई |

 

(8) उम्मुल मोमिनीन हज़रत ज़ुवेरिया बीनते अल – हारिस (रज़ी०) –

इसके बाद हुजुर (स०अ०) ने हज़रत ज़ुवेरिया बीनते हारिस बिन अबी – जर्रार से हुआ | हज़रत जुवेरिया (रज़ी०) गज्वा मरीसीह में क़ैद होकर आयी थीं और गनीमत में हज़रत साबित बिन कैस (रज़ी०) के हिस्से में आई | क़ैद होने से पहले मुसाफह बिन सफवान के निकाह में थीं | हज़रत साबित (रज़ी०) ने उनको 9 औकिया सोने पर मुकतिब (यानी गुलाम/बांदी) कर दिया |

हज़रत ज़ुवेरिया (रज़ी०) आप (स०अ०) की खिदमत में आईं और अर्ज़ किया – या रसूल अल्लाह ! मैं अपनी कौम के सरदार हारिस की बेटी जुवेरिया हूँ जो मुसीबत मुझपर नाजिल हुई, आपको मालूम है अब इतनी मिकदार मैं मुकतिब हुए हूँ और ये मिकदार मेरे ताक़त से बाहर है | आप (स०अ०) ने फारमाया के मैं तुझे इससे बेहतर रास्ता बताऊँ कि तुझे माल अदा करके आज़ाद कर दूँ और तुझसे निकाह कर लूँ | इस तरह सन 5 हिजरी में इस किस्से के बाद निकाह हो गया |

सही कौम के मुवाफिक सन 50 हिजरी में 65 साल की उम्र में मदीने में आप (रज़ी०) का इंतकाल हुआ और बाज़ ने सन 56 हिजरी में लिखा है

(9) उम्मुल मुमिनीन हज़रत उम्मे हबीबा (रज़ी०) –

उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे हबीबा (रज़ी०) अबू –सुफियान (नाम में इख्तलाफ है) की साहबज़ादी थी | उनका पहला निकाह उबैदुल्लाह बिन जहश से मक्का मुकर्रमा में हुआ था | दोनों मियां बीवी मुसलमान हो गए थे, कुफ्फार की तकलीफ़ के बदौलत वतन छोड़ना पढ़ा और हबशा की हिजरत की, वहां जाकर खाविंद नसरानी हो गया, यह इस्लाम पर बाक़ी रहीं |

हुजुर (स०अ०) ने ने हबशा के बादशाह नजाशी के पास पयाम भेजा कि इनका निकाह मुझसे कर दो | जब उम्मे हबीबा (रज़ी०) को मालूम हुआ तो बहुत ख़ुश हुईं | फिर नाज्जाशी ने निकाह करवाया (बाप ने निकाह किया इसमें इख्तलाफ है, ये सही नहीं है इसलिए की उनके बाप उस वक़्त तक मुसलमान नही हुए थे )

हज़रत उम्मे हबीबा (रज़ी०) के इंतकाल में भी इख्तलाफ है, बाज़ के मुताबिक सन 44 हिजरी और बाज़ के मुताबिक सन 42 या 55 हिजरी है |

 

(10) उम्मुल मोमिनीन हज़रत सफ़िया (रज़ी०) –

हज़रत सफ़िया (रज़ी०) हई की बेटी थी, जो हज़रत मूसा (अ०स०) के भाई हारुन (अ०स०) की औलाद में से हैं | पहले सलाम बिन मशकं के निकाह में थीं, उसके बाद कनाना बिन अबी-हक़ीक के निकाह में आयीं |

हज़रत सफ़िया एक सरदार की बेटी थी | दह्या (रज़ी०) जो एक सहाबी थे, हज़रत सफ़िया (रज़ी०) उनकी बांदी थीं, फिर रसूल अल्लाह (स०अ०)  ने उनको खातिरखवाह एवज़ देकर उनको ले लिया और उनको आज़ाद फरमा कर निकाह कर लिया | और सहाबा के साथ शरीक होकर वलीमा फ़रमाया |

रमजान सन 50 हिजरी में सही कौल के मुवाफ़िक़ इंतकाल हुआ, उस वक़्त आप (रज़ी०) की उम्र 60 साल थी |

 

(11) उम्मुल मोमिनीन हज़रत मैमुना (रज़ी०) –

उम्मुल मोमिनीन हज़रत मैमुना (रज़ी०) हारिस बिन हुज्न की बेटी थी, उनका नाम बर्रा था, हुजुर (स०अ०) ने बदल कर मैमुना रख दिया | पहले से अबू-रहम बिन अब्दुल उज्जा के निकाह में थीं |

बाज़ मुवार्रिखीन का यही कौल है कि जब हुजुर (स०अ०) उमरा के लिए मक्का तशरीफ़ ले जा रहे थे, तब मौज़ा सरफ में निकाह हुआ और वापसी में सरफ से ही रुखसती हुई |

आईशा (रज़ी०) फर्मतीं हैं कि मैमुना (रज़ी०) हम सब ज्यादा मुत्तकी और सिला रहमी करने वाली थीं | मुहद्दीसीन और मुवार्रिखीन का इत्तफाक है के हज़रत मैमुना (रज़ी०) वो आखिर खातून थीं जिनका आप (स०अ०) से निकाह हुआ था |

सन 51 हिजरी में सही कौल के मुवाफिक इंतकाल हुआ और बाज़ ने सन 61 में लिखा है | उस वक़्त उनकी उम्र 81 साल थी |

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

पोस्ट को share करें

दुआ की गुज़ारिश

Comments

Popular posts from this blog

Islamic Quiz in Hindi Part -8 - इस्लामिक सवाल जवाब

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     इस्लामिक क्विज पार्ट – 8 इस्लामिक क्विज पार्ट -7  में कुछ और अहम  सवाल – जवाब हैं  , जो के  (Competitions Exam ) के लिए बहुत मददगार है और साथ ही इस्लामिक मालूमात में इजाफा भी होगा इंशा अल्लाह  |   इस पार्ट में  ” आसमानी किताबें “   के बारे में सवाब जवाब है |   सवाल – आसमानी किताबों की तादाद कितनी हैं ? जवाब – अल्लाह तआला ने अंबिया (अ०स०) पर कुल 104 किताबें (जिनमे 100 सहिफें और 4 किताबें हैं  ) नाज़िल फरमाई | सवाल – आसमानी किताबों का इनकार करने वाला कैसा है ? जवाब – आसमानी किताबों का इनकार करने वाला मुसलमान नहीं है | सवाल – 4 मशहूर आसमानी किताबों के नाम क्या हैं और किन नबियों पर नाजिल हुईं ? जवाब – (1) तौरात –हज़रत मूसा (अ०स०) पर  (2) ज़बूर – हज़रत दाऊद (अ०स०) पर (3) इंजील – हज़रत ईसा (अ०स०) पर  (4) कुरआन मजीद – हज़रत मुहम्मद (स०अ०) पर सवाल – 4 अंबियाओं के अलावा और कितने रसूलों पर किताबें (सईफें) नाजिल हुईं? जवाब – अल्लाह तआला ने 4 अन्बियों के आलावा और रसूलों पर भी किताबें (सईफे ) नाजिल फरम

Jawnar ke Huqooq in Hindi - जावरों के हुक़ुक़

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   जानवरों  के हुक़ूक़  – इस्लाम में  जानवरों के साथ कैसा  बरताव करना चाहिए,ये तफ्सील से बताया गया है | बेज़बान जानवर जो कुछ बोलते नहीं और  मुतालबा भी नहीं करते उसका ख्याल करना हमारे लिए ज़रूरी है | इसके मुताल्लिक चंद हदीसें – हजरत इब्ने उमर रज़ि और हज़रत अबू हुरैरह रजि दोनों ने हुजूर सल्ल का यह इर्शाद नकल किया कि एक औरत को इस पर अज़ाब किया गया कि उसने एक बिल्ली को बांध रखा था, जो भूख की वजह से मर गयी, न तो उसने उसको खाने को दिया न उसको छोड़ा कि वह जमीन के जानवरों (चूहे वगैरह) से अपना पेट भर लेती। हुजूरे अक्स सल्ल. से मुख्तलिफ अहादीस में मुख्तलिफ उन्वानात से यह मज़मून  नकल किया गया कि इन जानवारों के बारे में अल्लाह तआला से डरते रहा करो। गौर करने की  बात – जो लोग जानवरों को पालते हैं, उनकी जिम्मेदारी सख्त है कि वे बे-ज़बान जानवर अपनी जरूरियात को जाहिर भी नहीं कर सकते ऐसी हालत में उनके खाने पीने को खबरगीरी बहुत अहम और जरूरी है। इसमें बुख़्ल  से  काम लेना अपने आप को अज़ाब में मुब्तला करने के लिए तैय

Qissa Hazrat Yusuf a.s – हज़रत युसूफ अ०स० का क़िस्सा

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   हज़रत युसूफ (अ०स०) – मशहूर नबियों में हज़रत युसूफ (अ०स०) का नाम भी शामिल है, जिसका ज़िक्र कुरआन मजीद के (सुरह युसूफ) में तफ़सीर से आया है | हज़रत युसूफ (अ०स०) के किस्से को कुरआन मजीद में अहसानुल क़सस (सबसे अच्छा क़िस्सा ) कहा गया है | हज़रत युसूफ (अ०स०) एक एसे नबी हैं जिनके बाप,दादा,परदादा सब पैगम्बर थे | कुरआन मजीद में ज़िक्र – कुरआन मजीद की बारवी सूरत और पारह 12 और 13 में तफसील से हज़रत युसूफ (अ०स०) का ज़िक्र आया है | نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ أَحْسَنَ ٱلْقَصَصِ بِمَآ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانَ وَإِن كُنتَ مِن قَبْلِهِۦ لَمِنَ ٱلْغَـٰفِلِينَ तर्जुमा – (ए पैगम्बर ) हम ने तुम पर ये कुरआन जो वहीह के ज़रिये भेजा है इस के ज़रिये हम तुम्हे एक बेहतरीन वाकिया सुनाते हैं, जबकि तुम इस से पहले (वाक़िये) से बिलकुल बेखबर थे |   नबी पाक (स०अ०) का इरशाद – हमारे प्यारे नबी (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया “ करीम इब्ने करीम,इब्ने करीम “ यानी करीम का बेटा,करीम का बेटा |   हज़रत युसूफ (अ०स०) का बचपन और ख़वाब – हज़रत

Islamic Quiz in Hindi - इस्लामिक सवाल जवाब

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     इस्लामिक क्विज पार्ट – 7 इस्लामिक क्विज पार्ट -7  में कुछ और अहम  सवाल – जवाब हैं  , जो के  (Competitions Exam ) के लिए बहुत मददगार है और साथ ही इस्लामिक मालूमात में इजाफा भी होगा इंशा अल्लाह  |   इस पार्ट में  ” इस्लामी जंग (लड़ाई)   ”  के बारे में सवाब जवाब है |   सवाल – इस्लाम के मशहूर जंगें कौन कौन सी हुईं ? जवाब – (1) जंग ए बदर (2) जंग ए उहद (3) गजवा ए खंदक (4) सुलह हुदैबिया (5) फतह ए मक्का (6) गजवा ए हुनैन (7) गजवा ए तबूक (8) जंग ए खैबर सवाल – इस्लाम की सबसे पहली जंग कौन सी है ? जवाब – जंग ए बदर सवाल – जंग ए बदर में मुसलमानों की कुल तादात कितनी थीं ? जवाब – 313 सवाल – जंग ए बदर में कुफ्फार कितने थे ? जवाब – 1000 सवाल – जंग ए बदर की लडाई कब हुई ? जवाब – 17 रमज़ानुल मुबारक सन 2 हिजरी सवाल – अल्लाह तआला ने जंग ए बदर में किस तरह मुसलमानों की मदद फरमाई ? जवाब – नबी करीम (स०अ०) की दुआ पर अल्लाह तआला ने फरिश्तों का एक लश्कर भेज कर मुसलमानों की मदद फरमाई सवाल – जंग ए बदर किस तारिख को फत

Bina hisab ke Jannat mein jane wale - सीधा जन्नत या जहन्नुम

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   शीधा जन्नत या जहन्नुम – आखिरत के दिन कुछ लोग एसे भी होंगे जो बगैर हिसाब व किताब के जन्नत में और बिना हिसाब के दोज़ख में डाल दिए जायेंगे, उसे बाद हिसाब किताब का सिलसिला शुरू होगा |   बिना हिसाब के जन्नत में जाने वाले – हज़रत  अस्मा रज़ि० कहती हैं, मैंने हुज़ूर सल्ल० से सुना कि क़ियामत के दिन सारे आदमी एक जगह जमा होंगे और फ़रिश्ता जो भी आवाज़ देगा, सबको सुनायी देगी। उस वक़्त एलान होगा कहां हैं वे लोग जो राहत और तकलीफ में हर हाल में अल्लाह की हम्द करते थे। यह सुन कर एक जमाअत उठेगी और बगैर हिसाब-किताब के जन्नत में दाखिल हो जाएगी दूसरी मर्तबा – फिर एलान होगा, कहां हैं वे लोग जो रातों में इबादत में मश्गूल रहते थे और उनके पहलू बिस्तरों से दूर रहते थे। फिर एक जमाअत उठेगी और बगैर हिसाब-किताब के जन्नत में दाखिल हो जाएगी। तीसरी मर्तबा – फिर एलान होगा, कहाँ हैं वे लोग जिनको  तिजारत और खरीद व फ़रोख़्त अल्लाह के ज़िक्र से ग़ाफ़िल नहीं करती फिर एक जमाअत उठेगी और बगैर हिसाब के जन्नत में दाखिल हो जाएगी। चौ

shabe meraj ki Haqeeqat - शबे मेराज का सफर

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   शबे मेराज के बारे में – अल्लाह तआला ने नबी करीम (स०अ०)  को एक ख़ास सफर कराया के मक्का से मस्जिद ए अक्सा और फिर सात आसमानों से गुजर कर सिद्रातुल मूनताहा से होते हुए अपने पास बुलाया । यह आप (स०अ०)  के लिए खास एजाज व सआदत की बात है। इसके मुतल्लिक कुरान में जिक्र – سُبْحَـٰنَ ٱلَّذِىٓ أَسْرَىٰ بِعَبْدِهِۦ لَيْلًۭا مِّنَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ إِلَى ٱلْمَسْجِدِ ٱلْأَقْصَا ٱلَّذِى بَـٰرَكْنَا حَوْلَهُۥ لِنُرِيَهُۥ مِنْ ءَايَـٰتِنَآ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْبَصِيرُ ١ तर्जुमा – पाक है वहज़ात जो अपने बन्दे को रातों रात मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक ले गई जिसके माहौल पर हमने बरकतें नाज़िल की हैं | ताके हम उन्हें अपनी कुछ निशानियाँ देखाएं | बेशक वह हर बात सुनने वाली, हर चीज़ देखने वाली ज़ात है | मेराज के सफर का आगाज़ – नबी करीम (स०अ०)  हजरत उम्मे हानी के घर तसरीफ फरमा थे । अचानक आप ने देखा के ऊपर छत फटी और दो आदमी आए, आप को उठाया और आपका सीना चाक किया और सोने की तश्त पर कल्ब को रखा  फिर ज़म-ज़म

Kon log roza Tod sakte hain - रोजा तोड़ने की इजाज़त

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ” अल्लाह ताआला का बंदों पर अहसान – अल्लाह तआला अपने बंदों पर बड़ा शफीक वा मेहरबान है। उसने अपनी रहमत से इंसानों को ऐसी ही चीजों का मोकल्लफ बनाया है जि से बा-आसानी अंजाम दे सके। अल्लाह तआला ने अपनी मेहरबानी व रहमत से बाज ऐसे लोगों को रमजान में रोजा तोड़ने की इजाज़त दी है । जिनको कोई ऐसा शरई उज्र लाहिक हो जिसकी वजह से उनके लिए रोजा रखना दुश्वार हो | कुरान मजीद में इर्शदे बारी तआला  – अल्लाह तआला किसी जान को उसकी ताकत से ज्यादा तकलीफ नहीं देता (सुरह बकरह)   जिन लोगों को रोज़ा तोड़ने की इज़ाज़त है वो ये हैं – (1) बड़े बूढ़े और दाइमुल मरीज़ – बहुत बूढ़े मर्द, बूढ़ी औरतें और ऐसे दाइमूल मरीज लोग जिनके सेहतमंद होने की उम्मीद खत्म हो चुकी है। यह लोग अगर रोजा रखने में दुश्वारियां और परेशानी महसूस करें और यह अंदाजा हो कि आइंदा कभी भी उन्हें रोजा क़जा करने की ताकत हासिल ना हो सकेगी तो शरीयत ने ऐसे लोगों को रुखसत दी है कि वह रोजा ना रखें और हर रोजा के बदले एक मिस्कीन को खाना खिलाएं । उन्हें क़जा करने  की जरू

Khajur(Dates) ke Fayde – खजूर के फ़ायदे

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   खजूर (Dates) – अल्लाह तआला ने हमें बेशुमार नेमतें से नवाज़ा है, उन नेमतों में से खजूर एक अहम्  नेमत है जिसका ज़िक्र हदीसों में कसरत से आया है | नबी करीम (स०अ०) के ज़माने में कसरत से खजूर के बागात हुआ करतीं थीं | ये नबी करीम (स०अ०) की दुआओ का सिला है के उस ज़माने से आज भी अरब में कसरत से पुरे साल खजूरों की खेती होती है और कभी कमी ना आई |   इसके मुताल्लिक हदीस – हज़रत साद बिन अबी वक्कास (रज़ी०) से मय्सर है के वह अपने वालिद गरामी से रिवायत करते हैं के नबी (स०अ०) ने फ़रमाया – जिस शख्स ने निहार मुह अज्वा खजूर के सात दाने खाए उसको उस दिन में ना तो किसी ज़हर से और ना किसी जादू से नुक्सान पहुंचेगा | (मुस्लिम ,अबू दाऊद) उपर के हदीस में मसनदे अहमद ने इजाफा किया है के – और अगर उसने ये खजूरें शाम को खाई तो किसी चीज़ से सुबह तक कोई नुक्सान नहीं होगा |   खजूर के फायदे – (1) खजूर में ज्यादा मिकदार में पोटाशियम होता है जो के बदन की कमज़ोरी में बहुत फायदेमंद है | रोज़ाना एक खजूर का दूध के साथ खाना बदन की कमज़ोरी को

Surah Takasur tafseer – सुरह तकासुर तफ़सीर

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   सुरह तकासुर फ़ज़ीलत – हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी०) से रिवायत है के रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया के – तुम में से कोई ये नहीं कर सकता के रोज़ाना एक हज़ार आयतें कुरआन पाक की पढ़ लिया करे ? सहाबा (रज़ी०) ने अर्ज़ किया हुज़ूर (स०अ०) ! किस में ये ताक़त है के रोज़ाना एक हज़ार आयतें पढ़े ? (यानी ये बात हमारी इस्ततात से बाहर है ), आप (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – क्या तुम से कोई इतना नहीं कर सकता के अल्हकुमुत-तकासुर पढ़ लिया करे |   तफ़सीर सुरह तकासुर (102) – بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم (1) जयादती की चाहत ने तुम्हे गाफिल कर दिया तफ़सीर – हर वह चीज़ जिस की कसरत इंसान को महबूब हो और कसरत के हुसूल की कोशिश व खवाइश उसे अल्लाह के अहकाम और आखिरत से गाफ़िल कर दे | यहाँ अल्लाह तआला इंसान की कमजोरी को बयान कर रहा है, जिस में इंसानों की अक्सरियत हर दौर में मुब्तला रही है |   (2) यहाँ तक के तुम क़बर्स्तान जा पहुंचे तफ़सीर – इस का मतलब है के हुसूल कसरत के लिए मेहनत करते करते, तुम्हें मौत आ गई और तुम क़ब्रों में जा पहुंचे |

Aulad ki tarbiyat – औलाद की तरबियत कैसे करें

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     औलाद की तरबियत – औलाद की तरबियत करना माँ-बाप की अहम् ज़ोम्मेदारी है | ये बात भी काबिले एतेबार है के अगर घर की ख़वातीन या माँ दीनदार है तो इंशाअल्लाह बच्चे ज़रूर दीनदार होंगे क्यूंकि बच्चों की असल दर्सगाह माँ की गौद है | जैसा उसके घर का माहौल होगा तो बच्चे ज़रूर उसमे ढालेंगे अगर माँ-बाप ही नए माहौल के हों तो बच्चे का दीनदार होना मुश्किल है |   अल्लाह तआला का इरशाद – يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًۭا وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلَـٰٓئِكَةٌ غِلَاظٌۭ شِدَادٌۭ لَّا يَعْصُونَ ٱللَّهَ مَآ أَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ तर्जुमा – ए ईमान वालों ! अपने आप को और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिसका इंधन इंसान और पत्थर होंगे उसपर शख्त कड़े मिजाज़ के फरिश्तें मुक़र्रर हैं जो अल्लाह के किसी हुक्म में उसकी नाफ़रमानी नहीं करते, और वही करते हैं जिसका उन्हें हुक्म दिया जाता है | (सुरह तहरिम आयत 6) इसके मुताल्लिक हदीस – नबी करीम (स०अ०) ने इरश