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Badnazri ki Haqeeqat - आंखों की हिफाजत कैसे करें

 

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है

 

बद नज़री एक बुरी बीमारी है –

कुरआन मजीद में अल्लाह तआला ने हमारी एक बीमारी का बयान फरमाया है। वह है “बद-निगाही” यह बद-निगाही ऐसी बीमारी है। जिसमें लोग बेहद मुब्तला हैं, अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग, उलमा, अल्लाह वालों की सोहबत में उठने बैठने वाले, दीनदार, नमाज़ रोजे के पाबन्द भी इस बीमारी के अन्दर मुन्तला हो जाते हैं, और आज कल तो हालत यह है कि अगर आदमी घर से बाहर निकले तो आंखों का बचाना मुश्किल नज़र आता है, हर तरफ ऐसे मनाज़िर हैं। कि उन से आंखों को पनाह मिलनी मुश्किल है।

 

कुरआन मजीद में अल्लाह का इरशाद –

قُل لِّلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا۟ مِنْ أَبْصَـٰرِهِمْ وَيَحْفَظُوا۟ فُرُوجَهُمْ ۚ ذَ‌ٰلِكَ أَزْكَىٰ لَهُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِيرٌۢ بِمَا يَصْنَعُونَ

मोमिन मर्दों से कह दो के वह अपनी निगाहें नीची  रखें, और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करें | यहीं उनके लिए पज़किज़ा तरीन तरीका है | वह जो कारवाइयां करते हैं | अल्लाह उन सबसे पूरी तरह बाखबर है |

 

इसके मुतल्लिक़ हदीस

हदीस शरीफ में हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इर्शाद फरमाया कि –
“नज़र” शैतान के तीरों में से एक जहर भरा तीर है, यह तीर जो शैतान के कमान से निकल रहा है। अगर किसी ने उसको बर्दाश्त कर लिया, और उसके आगे हथियार डाल दिए, तो इसका मतलब यह है कि बातिन (अन्दर की हालत) की इस्लाह में अब बड़ी रुकावट खड़ी हो गयी, इसलिये कि इन्सान के बातिन को खराब करने में जितना दिल इस आंख के गलत इस्तेमाल का है, शायद किसी और अमल का न हो।

बद-निगाही की हकीकत

“बद-निगाही” का हासिल यह है कि किसी गैर मेहरम पर निगाह डालना, खास कर जब्कि शहवत (ख़्वाहिश ) के साथ निगाह डाली जाए, या लज़्ज़त हासिल करने के लिए निगाह डाली जाए. चाहे वह गैर मेहरम हकीकी तौर पर जिन्दा हो, और चाहे गैर मेहरम की तस्वीर हो । उसपर भी निगाह डालना हराम है और बद निगाही के अंदर दाखिल है।

यह बद-निगाही का अमल अपने नफ्स की इस्लाह के रास्ते में सब से बड़ी रुकावट है, और यह अमल इन्सान के बातिन के लिए इतना तबाह-कुन है कि दूसरे गुनाहों से यह बहुत आगे बढ़ा हुआ है, और इन्सान के बातिन (अन्दर) को खराब करने में कही हद तक दिल ज़िम्मेदार है, जब तक ये  काबू न हो, और निगाह काबू में न आए, उस वक्त तक बातिन की इस्लाह का तसव्वुर तकरीबन मुहाल है.

 

थोड़ी मुशक्कत उठा लो  –

निगाह का गलत इस्तेमाल बातिन के लिए कातिल ज़हर है, अगर बातिन की इस्लाह (सुधार) मन्जूर है तो सब से पहले इस निगाह की हिफाजत करनी होगी यह काम बड़ा मुश्किल नज़र आता है दूंडने से भी आंखों को पनाह नहीं मिलती, हर तरफ बे पर्दगी, बे हिजाबी, नंगापन और अश्लीलता का बाजार गर्म है, ऐसे में अपनी निगाहों को बचाना मुश्किल नजर आता है, लेकिन अगर ईमान की मिठास हासिल करना मन्जूर है और अल्लाह जल्ल जलालुहू के साथ ताल्लुक और मुहब्बत मन्जूर है, और अपने बातिन की सफाई, तकिया और तहारत मन्जूर है, तो फिर यह कड़वा घूंट ऐसा है कि शुरू में तो बहुत कड़वा होता है, मगर जब जरा इसकी आदत डाल लो तो फिर यह घूंट ऐसा मीठा हो जाता है कि फिर इसके बगैर चैन भी नहीं आता।

खुद ब खुद दिल मचलना और ख्याल का आना गुनाह नहीं –

दिल का मचलना या बुरे ख्याल का आना ये अपने अख्तियार्र में नहीं है बलके खुद ब खुद दिल में आ जाता है, इसलिए इसपर पकड़ नहीं होगी और इंशाल्लाह इसपर अल्लाह के यहाँ गिरफ्त नहीं होगी |

लेकिन दिल में ख्याल आया या खवाइश पैदा हुए और उसपर अमल कर लिया मसलन किसी ना-महरम को देख लिया तो इसपर पकड़ होगी | पहली नज़र अचानक पड़ गई या निगाह गैर इख्तियारी तौर पर पड़ गई तो माफ़ है लेकिन दूसरी निगाह लज्ज़त हासिल करने के लिए उठाया तो गुनाह है |

आंख का सही इस्तेमाल

अब अगर इस नेमत का सही इस्तेमाल करो गे तो अल्लाह तआला फरमाते हैं कि मैं तुमको उस पर सवाब भी दूंगा, जैसे इस आंख के जरिये मुहब्बत की निगाह अपने मां बाप पर डालो, तो हदीस शरीफ में है कि एक हज और एक उमरे का सवाब मिलेगा अल्लाहु अक्बर |

एक दूसरी हदीस में है कि शौहर घर में दाखिल हुआ, और उसने अपनी बीवी को मुहब्बत की निगाह से देखा और बीवी ने शौहर को मुहब्बत की निगाह से देखा तो अल्लाह तआला दोनों को रहमत की निगाह से देखते हैं। जब इस आंख को सही जगह पर इस्तेमाल किया जा रहा है तो सिर्फ यह नहीं कि अल्लाह तआला उस पर लज्जत और लुत्फ अता फरमा रहे हैं बल्कि उस पर अज्र और सवाब भी अता फरमा रहे हैं। लेकिन अगर इसका गलत इस्तेमाल करोगे और गलत जगह पर निगाह डालोगे, और गलत चीजें देखोगे तो फिर इसका वबाल भी बड़ा सख्त है। और यह अमल इन्सान के बातिन को खराब करने वाला है।

बद-निगाही से बचने का इलाज

इस बद-गिनाही से बचने का एक ही रास्ता है, वह यह है कि हिम्मत से काम लेकर यह तै कर लो कि यह निगाह गलत जगह पर नहीं उठेगी। उसके बाद फिर चाहे दिल पर आरी ही क्यों न चल जाएं, लेकिन इस निगाह को मत डालो।
बस हिम्मत और इरादा करके इस निगाह को बचाएं. तो फिर देखो कि अल्लाह तआला की तरफ से कैसी मदद और नुस्रत आती है।

बद – नज़री से बचने के दो तरीक़े हैं –

(1) हिम्मत को इस्तमाल करो –

इसका मतलब ये है के अपने आपको जहाँ तक हो सके जितना बचा सकते हैं बचा लो

(2) अल्लाह तआला की तरफ रुजुह –

अल्लाह तआला की तरफ रुजुह का मतलब है कि जब कभी एसी आज़माइश पेश आये तो फ़ौरन अल्लाह तआला की तरफ रुजुह करो और कहो के – या अल्लाह ! अपनी रहमत से मुझे बचा लीजिये, मेरी आँख को बचा लीजिये, मेरे खयालात को बचा लीजिये | अगर आपने मदद न फरमाई तो मैं मुब्तला हो जाउंगा | ध्यान रहे के दुआ के साथ – साथ गुनाह से बचने की कोशिश भी करनी चाहिए

 

दुआ के बाद भी अगर गुनाह हो जाये –

गुनाह से बचने की दुआ की तो दुआ तो कुबूल हो जाती है, लेकिन इस दुआ का असर ये होगा की अव्वल तो इंशाअल्लाह गुनाह सरज़द नहीं होगा और अगर गुनाह हो भी गया तो तौबा की तौफीक़ ज़रूर हो जाएगी | (अगर ये ख्याल रखना के मेरी दुआ कुबूल नहीं होती या नहीं होगी  तो अल्लाह उसके नियत पर बदल देते हैं, इसलिए हमेशा ये नियत रखनी चाहिए के हर दुआ कुबूल होती है)

 

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त से दुआ है के बद-नज़री जैसे बड़े फितने से महफूज़ फरमाए – अमीन

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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दुआ की गुअरिश

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بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     औलाद की तरबियत – औलाद की तरबियत करना माँ-बाप की अहम् ज़ोम्मेदारी है | ये बात भी काबिले एतेबार है के अगर घर की ख़वातीन या माँ दीनदार है तो इंशाअल्लाह बच्चे ज़रूर दीनदार होंगे क्यूंकि बच्चों की असल दर्सगाह माँ की गौद है | जैसा उसके घर का माहौल होगा तो बच्चे ज़रूर उसमे ढालेंगे अगर माँ-बाप ही नए माहौल के हों तो बच्चे का दीनदार होना मुश्किल है |   अल्लाह तआला का इरशाद – يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًۭا وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلَـٰٓئِكَةٌ غِلَاظٌۭ شِدَادٌۭ لَّا يَعْصُونَ ٱللَّهَ مَآ أَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ तर्जुमा – ए ईमान वालों ! अपने आप को और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिसका इंधन इंसान और पत्थर होंगे उसपर शख्त कड़े मिजाज़ के फरिश्तें मुक़र्रर हैं जो अल्लाह के किसी हुक्म में उसकी नाफ़रमानी नहीं करते, और वही करते हैं जिसका उन्हें हुक्म दिया जाता है | (सुरह तहरिम आयत 6) इसके मुताल्लिक हदीस – नबी करीम (स०अ०) ने इरश