بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
एक सच्चा वाक़िआ –
हज़रत अब्दुल वाहिद बिन ज़ैद रह० ( जो मशाइखे चिश्तियः के सिलसिले में मशहूर बुजुर्ग हैं) फ़रमाते हैं कि हम लोग एक मर्तबा कश्ती में सवार जा रहे थे, हवा की गर्दिश ने हमारी कश्ती को एक जज़ीरे में पहुँचा दिया,हमने वहां एक आदमी को देखा कि एक बुत को पूज रहा है । हमने उससे पूछा “कि तू किसकी परस्तिश करता है? उसने उस बुत की तरफ़ इशारा किया। हमने कहा, तेरा माबूद खुद तेरा बनाया हुआ है और हमारा माबूद ऐसी चीजें बना देता है, जो अपने हाथ से बनाया हुआ हो, वह पूजने के लायक नहीं हैं।
उस शख्स का सवाल और हज़रत ज़ैद (र०) का जवाब –
उसने कहा तुम किसकी परस्तिश (अिबादत) करते हो? हमने कहा, उस पाक ज़ात की जिसका अर्श आसमान के ऊपर है, उसकी गिरफ्त ज़मीन पर है, उसकी अज़मत और बड़ाई सबसे बालातर है। कहने लगा तुम्हें उस पाक ज़ात का इल्म किस तरह हुआ? हमने कहा, उसने एक रसूल सल्ल० (कासिद) हमारे पास भेजा जो बहुत करीम और शरीफ़ था। उस रसूल सल्ल० ने हमें ये सब बातें बतायीं। उसने कहा, वह रसूल (सल्ल.) कहां है? हमने कहा कि उसने जब पयाम पहुँचा दिया और अपना हक़ पूरा कर दिया तो उस मालिक ने उसको अपने पास बुला लिया ताकि उसके पयाम पहुँचाने और उसको अच्छी तरह पूरा कर देने का सिला व इन्आम अता फ़रमाये। उसने कहा कि उस रसूल (सल्ल.) ने तुम्हारे पास कोई अलामत छोड़ी है? हमने कहा, उस मालिक का पाक कलाम हमारे पास छोड़ा है। उसने कहा, मुझे वह किताब दिखाओ हमने कुरआन पाक लाकर उसके सामने रखा। उसने कहा, मैं तो पढ़ा हुआ नहीं हूँ,
तुम इसमें से मुझे कुछ सुनाओ। हमने एक सूरत सुनाई, वह सुनते हुए रोता रहा | यहां तक कि वह सूरत पूरी हो गयी। उसने कहा, इस पाक कलाम वाले का हक़ यही है कि उसकी नाफरमानी न की जाये।
उस शख़्स का एक हैरान करदा सवाल –
इसके बाद वह मुसलमान होगया। हमने उसको इस्लाम के अर्कान और अहकाम बताये और चंद सूरतें कुरआन पाक की सिखाईं। जब रात हुई, इशा की नमाज़ पढ़ कर हम सोने लगे तो उसने पूछा कि तुम्हारा माबूद भी रात को सोता है। हमने कहा कि वह पाक ज़ात हय्युन् कय्यूम है,
वह न सोता है न उस को ऊंघ आती है (आयतुल कुर्सी) वह कहने लगा, तुम किस कदर नालायक बंदे हो कि आका जागता रहे और तुम सो जाओ। हमें उसकी बात से बड़ी हैरानी हुई ।
मुल्क वापस आने पर –
जब हम उस जज़ीरे से वापस होने लगे तो वह कहने लगा कि मुझे भी अपने साथ ही ले चलो, ताकि मैं दीन की बातें सीखूँ। हमने अपने साथ ले लिया। जब हम शहर अबादान में पहुंचे तो मैं ने अपने साथियों से कहा कि यह शख़्स ‘नौ मुस्लिम है, इसके लिए कुछ मआश का फ़िक्र भी चाहिए । हमने कुछ दिरम चंदा किया और उसको देने लगे। उसने पूछा, यह क्या है? हमने कहा कुछ दिरम हैं इनको तुम अपने खर्चे में ले आना। कहने लगा ला इला-ह इल्लल्लाह, तुम लोगों ने मुझे ऐसा रास्ता दिखाया जिस पर खुद भी नहीं चलते । मैं एक जज़ीरे में था, एक बुत की परस्तिश करता था, ख़ुदा पाक की परस्तिश भी न करता था, उसने उस हालत में भी मुझे ज़ाया और हलाक नहीं किया हालांकि मैं उसको जानता भी न था, पस वह इस वक्त मुझे क्यों कर जाया कर देगा जबकि मैं उसको पहचानता भी हूँ (उसकी इबादत भी करता हूँ )
उसका शख्स का आख़िरी वक़्त –
तीन दिन के बाद हमें मालूम हुआ कि उसका आखिरी वक्त है,मौत के करीब है, हम उसके पास गये उससे पूछा कि तेरी कोई हाजत हो तो बता? कहने लगा कि मेरी तमाम हाजतें उस पाक ज़ात ने पूरी कर दी (जिसने तुम लोगों को जज़ीरे में मेरी हिदायत के लिए भेजा था।)
शैख अब्दुल वाहिद रह० फरमाते हैं कि मुझ पर दफूअतन ( अचानक) नींद का ग़लबा हुआ, मैं वहीं सो गया तो मैं ने ख्वाब में देखा, एक निहायत सरसब्ज़ शादाब बाग़ है, उसमें एक निहायत नफ़ीस कुब्बा बना हुआ है, उस में एक तख़्त बिछा हुआ है, उस तख़्त पर एक निहायत हसीन लड़की कि उस जैसी खूबसूरत औरत कभी किसी ने न देखी होगी,यह कह रही है, खुदा के वास्ते उसको जल्दी भेज दो, उसके इश्तियाक में मेरी बेकरारी हद से बढ़ गयी. है। मेरी आंख खुली तो उस नौ मुस्लिम की रूह प्रवाज कर चुकी, थी, हमने उसकी तजहीज़ व तकफ़ीन की और दफन कर दिया।
अल्लाह तआला का इनाम –
जब रात हुई तो मैं ने वही बाग और कुब्बा और तख्त पर वह लड़की उस के पास देखी और वह यह आयते शरीफ़ा पढ़ रहा था:
” वल्-मला इ-कतु यद्ख़ुलू-न अलैहिम् मिन् कुल्लि बाब ” (रअद, रूकूअ 3)
जिसका तर्जुमा यह है, और फ़रिश्ते उनके पास हर दरवाजे से आते होंगे और उनको सलाम करते होंगे (जो हर किस्म की आफत से सलामती का मुज्दा (खुशखबरी) है और यह) इस वजह से कि तुमने सब्र किया था ( और दीन पर मज़बूत जमे रहे) पस इस जहान में तुम्हारा अंजाम बहुत बेहतर है । (रौज़)
आखिर में (हमारे लिए सीख) –
हक़ तआला शानुहू की अता बख़्शिश के करिश्मे हैं कि सारी उम्र बुत परस्ती की और उसने अपने लुत्फ़ व करम से मौत के करीब उन लोगों को जबरदस्ती कश्ती के बेकाबू हो जाने से वहां भेजा और उसको आख़िरत की दौलत से मालामाल कर दिया:
“अल्ला हुम्-म ल मानि-अ लिमा आतै-त वला मुञ् ती- य लिमा म-न अ-त “
“मालिकुल मुल्म, जिसको तू देना चाहे, उसको कोई रोकने वाला नहीं है और जिसको तू न चाहे उसको कोई देने वाला नहीं है ।
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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