Ramzan ki Fazilat - रोज़े का बयान
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
” शरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
रोज़े का बयान –
रोज़ा इस्लाम का दूसरा अहम् रुक्न (Pillers of Islam) है|
रमजान का महीना क़मरी महीने (Hijri Calendar ) का 9वा महीना है,क़ुरान व हदीस में इस महीने की बड़ी फ़ज़ीलत व सवाब आया है|प्यारे नबी (स०अ०) ने फ़रमाया की जिस ने रमज़ान के रोज़े सिर्फ अल्लाह तआला के वास्ते सवाब समझ कर राखे तो उसके सब अगले पिछले गुनाह बख्श दिए जायेंगे,बिला उज्र रोज़े ना रखने वाला शक्त गुनाहगार होगा
रिवायत है के रोजेदारों के वासते क़यामत के दिन अर्श के तले दस्तरख्वान चुना जायेगा|वो लोग उस पर बैठ कर खाना खायेंगे और सब लोग अभी हिसाब में फसे होंगे,इस पर वो लोग कहेंगे की ये लोग कैसे हैं की खाना खा- पी रहे हैंऔर हम अभी हिसाब में ही फसे हैं|उनको जवाब मिलेगा की ये लोग रोज़ा रखा करते थेऔर तुम लोग रोज़ा नही रखते थे|
रोज़ा किस पर फ़र्ज़ है –
रमज़ान शरीफ़ के रोज़े हर बालिग़ मुसलमान मर्द,औरत पर फ़र्ज़ है ,सिवाए पागल और नाबालिग़ और मुसाफिर या कोई बीमार हो या हैज़ वाली औरत |बीमार को चाहिए के वो जब वो सेहतयाब हो तो छुटे हुए रोज़े राखे,और मुसाफिर को चाहिए के सफ़र के ख़तम होने पर कज़ा रोज़े राखे|
रमज़ान का अशरा –
रमज़ान को 3 अशरा हैं –
1. पहला अशरा (पहले 10 दिन) ये अशरा रहमत का है
2. दूसरा अशरा (दुसरे 10 दिन) ये अशरा मगफिरत का है
3. तीसरा अशरा (तीसरे 10 दिन) ये अशरा जहन्नम से नजात और खलासी का है
रोज़े का वक़्त –
रोज़े का वक़त सुबह सादिक यानी फज़र के आज़ान से लेकर सूरज गुरूब तक यानी मगरिब की अज़ान तक है|
सहरी –
सुबह सादिक से पहले कुछ खा पी लेना सुन्नत है और इसकी बहुत फ़ज़ीलत हदीसों से वारिद है,अगर पेट भरा हो या खाने का मन न हो तब भी एक या दो लुकमा खाना चाहिए, सहरी में बरकत होती है|
रोज़े की नियत करना –
रोज़े की नीयत करना ज़रूरी है,सहरी में उठे तो नियत कर लें सुबह से दुपहर के दरमियान नियात ज़रूर कर लेनी चाहिए |
सहरी की दुआ
وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ
‘’व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमजान’’
मैंने रमज़ान के रोज़े की नियत की
जिन से रोज़ा टूट जाता है –
(1) रोज़े के दौरान खाने या पीने से|
(2) रोज़े के दौरान बीवी से हमबिस्तरी कर ली तो रोज़ा टूट जाता है|
(3) हुक्का, सिगरेट,बीडी,पान तम्बाकू खाने से रोजा टूट जाता है|
(4) दाँतों में कोई चीज़ चने बराबर या उससे ज्यादा थी और उसे खा गया या मुह से निकाल कर फिर खा गया तो रोज़ा टूट गई|
(5) कुल्ली करते वक़्त पानी हलक से उतर गया या नाक में पानी चढा रहा था और दिमाग में चढ़ गया तो रोज़ा टूट गया|
(6) मुह में थूक जमा कर के निगल लिया तब भी रोज़ा टूट गया|
(7) मुह में ज़बरदस्ती हाथ डाल कर कै करने से रोज़ा टूट जाता है|
(8) खवाइश के साथ औरतों का शर्मगाह देखने से रोज़ा टूट जाता है|
जिन चीजों से रोज़ा नही टूटता –
(1) रोज़ा याद न हो और भूले से खा पी लिया तो रोज़ा नही टूटता|
(2) अगर रोज़ा याद न हो और हमबिस्तरी की तो नही टूटता|
(3) मक्खी,गर्द व गुबार या धुवा हलक़ में जाने से रोज़ा नही टूटता|
(4) तेल या सुरमा लगाने से रोज़ा नही टूटता|
(5) थूक निगलने से भी रोज़ा नही टूटता या दाँतों से खून निकला और निगल गए पता नही चला तो सूरत में भी रोज़ा नही टूटा|
(6) अहतलाम (Night Fall) हुआ और दिन भर नापाकी की हालत में रहा तो रोज़ा नही टूटता अलबत्ता नापाकी का गुनाह होगा|
(7) किसी औरत का खाविंद सख्त हो और खाने में नमक की वजह से गुस्सा करता हो तो बीवी को जाएज़ है के खाने में नमक पता करने के लिए ज़बान पर नमक मालूम करे और फिर थूक दे इससे रोज़ा नही टूटता है|
(8) ख़ुद बख़ुद उलटी आने से रोज़ा नही टूटता|
जिन चीजों से रोज़ा मकरूह होता है –
(1) मुह में रबर या कोई चीज़ का चबाना या डाले रखना
(2) गीबत करना
(3) झूठ बोलना
(4) गाली गरोज़ करना
(5) भूख की शिद्दत का ज़िक्र करना
(6) मुह में थूक जमा करना
(7) टूथब्रश से या कोयले से दात साफ़ करना
रोज़ा खोलने का बयान –
रोज़े के खोलने से 15 से 20 मिनट पहले ही इफ्तारी को अपने सामने लेकर बैठ जाना चाहिए ,हदीस में है के इफ्तार के वक़्त मागी गई दुआ ज़रूर कुबूल होती है,इफ्तार के वक़्त खूब दुआए मागने का अह्तामाम करें|जब इफ्तार का वक़्त हो जाये तो ताखीर न करें,तुरंत रोज़ा खोल लें|
खुजूर या पानी से इफ्तार करना सुन्नत है|
इफ्तार की दुआ
اَللّٰهُمَّ اِنَّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ
अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतु, व-बिका आमन्तु, व-अलयका तवक्कालतू, व- अला रिज़क़िका अफतरतू
हे, अल्लाह! मैंने तुम्हारे लिए रोज़ा रखा और मुझे तुम पर यकीन है और मैंने तुम पर अपना भरोसा रखा है।
तरावी की नमाज़ –
तरावी की नमाज़ पढना सुन्रनत है,रमजान के महीने में तरावी की नमाज़ का अह्तेमाम करना चाहिए,तरावी रमज़ान का चाँद हो जाने के बाद से शव्वाल के चाँद तक पढी जाती है|तरावी की नमाज़ कुल 20 रकात या कुछ और रवायतों के मुताबिक 8 रकात है लेकिन 20 रकात का पढना ज्यादा रवायतों से साबित है|तरावी में कुराने करीम का पूरा पढना सुन्नत है|
एतेकाफ –
आखरी अश्रे में 21 रमज़ान से 29 रमजान के चाँद तक अल्लाह की इबादत के लिए मस्जिद के किसी कोने में बैठने को एतेकाफ कहते हैं,अगर कोई भी शख्स एतेकाफ में न बैठा तो सारे बस्ती वाले गुनाहगार होंगे|
शबे क़दर –
शबे कदर की फ़ज़ीलत कुरान व अहादीस में बहुत कसरत से बयान हुइ है,कुराने करीम में शबेक़दर को हज़ार महीनो से अफज़ल बताया गया है,हुज़ूरे पाक (स०अ०) के हदीस का मफूम है के आप ने शबे क़दर की तलाश 5 ताक रातों में करने को कहा है यानि 21,23,25,27 और 29 की शब् को
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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