Huzur SAW ki Paidaish ka Qissa - हुजुर स०अ० की पैदाइश

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

” शरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “

नबी करीम (स०अ०) की पैदाइश –

हमारे प्यारे नबी (स०अ०) तकरीबन साढ़े चौदा साल पहले मक्का मोअज्ज़मा में पैदा हुए ,

रब्बी उल अव्वल की 9 तारिख थी,पीर(Monday) का दिन था और सुबह सादिक का वक़्त था |आप (स०अ०) के वालिद का नाम अब्दुल्लाह था, और वालिदा का नाम आमिना, दादा का नाम अब्दुल मुताल्लिब था|आप का खानदान हाश्मी कहलाता था,और आप की बरादरी को क़ुरैश  कहा जाता था|

आप (स०अ०) यतीम पैदा हुए थे,क्युकि पैदाइश के कुछ दिनों पहले आप के वालिद शाहब की वफात हो चुकि थी,मक्का में क़हत था,बीमारी फैली हुई थी,आप के पैदा होते ही बारिश हुई और बीमारी जाती रही|आप (स०अ०) के कोई भाई बहन न थे, अलबत्ता दूध शरीक भाई  बहन थे|

आप (स०अ०)  के दादा ने आप का नाम ” मुहम्मद ” रखा और वालिदा मुह्तारम ने आप का नाम अहमद रखा,ये दोनों नाम बहुत अलग और प्यारे थे|

आपका जब भी नाम ” मुहम्मद “ लिया जाये तो चाहिए के आप पर दरूद भेजे और सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ” ज़रूर पढना चाहिए|

 

आप (स०अ०) का बचपन – 

आप (स०अ०) कुछ दिन माँ के साथ रहे,फिर अरब के दस्तूर के मोवाफिक गाँव से दूध पिलाने वाली औरतें आया करती थीं,सब औरतों ने आप को देखा मगर गरीबी और यतीमी की वजह से सब ने ले जाने से मना कर दिया,आखिर में हज़रत हलीमा (रज़ी०) जो एक नेक खातून थी, और उनकी उटनी कमज़ोर थी इसलिए पीछे रह गयीं,उन्होंने आप (स०अ०) को ले लिया क्यों की कोई बच्चा न मिला |

आप (स०अ०) के हलीमा (रज़ी०) के घर आने से बरकतों का सिलसिला शुरू हो गया,जो बकरी कमज़ोर और लागर थी आप (स०अ०) के घर तशरीफ़ लाने के बाद बकरी  सेहतमंद हो गई और इतना दूध दिया के सबने सैराब होकर बकरी का दूध पिया !सुभानाल्लाह, हुजुर (स०अ०) ने दो साल हज़रत हलीमा (रज़ी०) के यहाँ परवरिश पाई,आप (स०अ०) जब पांव चलने लगे तो दूध शरीक भाइयों के साथ आप (स०अ०) भी बकरियां चराने जाते|
दो साल बाद जब दूध छोड़ा दिया गया तो हज़रत हलीम (रज़ी०) ने आप (स०अ०) को मक्का ले गयीं और आप की वाल्दा को सुपुर्द कर दिया लेकिन चूँकि मक्के में बीमारी फैली हुई थी,तो हज़रत हलीमा (रज़ी०) ने आप (स०अ०) को फिर से वापस ले आईं,और चार साल मजीद आप वहां रहें,फिर आखिर कार आप (स०अ०) अपने वाल्दा के पास आ गए|

जब आप 6 या 7  साल के थे तो आप की वाल्दा का भी इंतकाल हो गया,अपनी वाल्दा के इंतकाल पर आप (स०अ०) बहुत ग़मज़दा हुए,फिर  आप (स०अ०) की परवरिश आप के दादा अब्दुल मुताल्लिब ने की,लेकिन दो साल बाद यानी 8 साल की उम्र में उनको भी इंतकाल  हो गया |उसके बाद आपके चचा अबू तालिब ने आप की परवरिश की ज़िम्मेदारी संभाली|

आप (स०अ०) दुसरे बच्चों की तरह शरारत ,शोर शराबा नही करते बलके हमेशा खामोश रहते,बचपन से ही आप सच बोलते,आला अखलाक वाले थे,लोग आप (स०अ०) को शादिक और अमीन कहते थे|अक्सर तिजारत के सिलसिले अपने चचा के साथ मुल्के शाम जाया करते |चचा के ज़ेरे निगरानी आप ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखी|

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह

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दुआ की गुज़ारिश

 

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