Hajj ke Faraiz aur Masail - हज का तरीका

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

” शरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “

 

हज के मसाइल और फ़ज़ीलत – 

हज इस्लाम का 5वा रुक्न (pillers of Islam) है |

हज इस्लाम में एक अहम् तरीन फर्जों में से एक है,हज इस्लामिक महीना जिलहिज्जा में हर  ममालिक से लोग मक्का पहुचते हैं और हज के अरकान अदा करते हैं, हज सारी ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार फ़र्ज़ है|

कुराने करीम में अल्लाह का इरशाद –

“ लोगों पर अल्लाह का हक़ है के जो उस के घर तक पहुचने की इसतताअत रखता हो वो उसके घर का हज करेऔर जो शख्स उसके हुक्म की पैरवी से इनकार करे उसे मालूम होना चाहिए के अल्लाह तआला  तमाम दुनिया वालों से बेनियाज़ है ” (Surah Al – Imran)

 

हज के मुताल्लिक हदीस – 

हज़रत अबू हुरैरह (रज़ी०) कहते हैं मैं ने नबी अकरम (स०अ०) को ये फरमाते हुए सुना है – “ जिस ने अल्लाह  तआला की  रज़ा के लिए हज किया और इस दौरान कोई बेहूदा बात या कोई गुनाह ना किया,वो हज करके उस दिन की तरह (गुनाहों से पाक) लौटेगा जिस तरह उसकी माँ ने जना था (बुखारी)

“ हज़रत उमरू बिन आस (रज़ी०) कहते हैं के मैंने नबी अकरम (स०अ०) की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया, अपना दायाँ हाथ आगे कीजिये ताके मैं आप (स०अ०) से बैत करूं,नबी अकरम (स०अ०) ने अपना दायाँ हाथ आगे किया तो मैंने अपना हाथ खीच लिया,नबी अकरम (स०अ०) ने दरयाफ्त किया,उमरू क्या हुआ ?,मैंने अर्ज़ किया या रसूलललाह (स०अ०) शर्त रखना चाहता हु,आप (स०अ०) ने अर्ज़ किया,क्या शर्त रखना चाहते हो,मैंने अर्ज़ किया गुज़िश्ता गुनाहों की मगफिरत की,तब आप (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – क्या तुझे मालूम नही के इस्लाम में  दाखिल होना गुज़िश्ता गुनाहों को मिटा देता है,हिजरत गुज़िश्ता तमाम  गुनाहों को मिटा देती है और हज गुज़िश्ता तमाम गुनाहों को मिटा देता है (मुस्लिम)

 

“ हज़रत अली (रज़ी०) से रवायत है,उन्होंने कहा के जिस ने कुदरत रखने के बावजूद  हज ना किया,उसके लिए बराबर है यहूदी होकर मरे या इसाई होकर”

 

हज की शर्तें – 

(1) मालदार होना  

(2) मुसलमान होना

(3) आकिल(अक़लमंद) होना

(4) बालिग़ होना

(5) आज़ाद होना

(6)  सेहतमंद होना

(7) रस्ते का पुर अमन होना

(8) हुकूमत के तरफ से कोई रुकावट न होना

 

अय्यामे हज

 हज के अरकान  (8.9.10.11.12.13 जिल हिज्जा) के दिनों में होती है|

 

8 जिल हिज्जा – 

(1) सूरज तुलुह होने के बाद और और जोहर से पहले मीना पहुचना 

(2) मीना में पांच नमाज़े (जोहर,मगरिब,ईशा,और फज़र ) अदा  करना

(3) मीना में तमाम नमाज़े क़सर  के साथ अदा करना 

(4) बकसरत बुलंद आवाज़ से तकबीर कहना

 

9 जिल हिज्जा – 

(1) तुलु अफताब के बाद मीना से अरफात रवाना होना

(2) ज़वाल आफताब के बाद मस्जिदे नम्र में खुतबा सुनना,दुहर और असर की नमाज़ क़सर कर के अदा करना

(3) नमाजों के बाद में जबले रहमत के क़रीब क़याम करना

(4) गुरुब आफताब के बाद मुज़ल्का रवाना होना

(5) दौरान सफ़र बुलंद आवाज़ से तकबीर 

(6) मुज़ल्का की रात – मगरिब और ईशा की नमाजें जमाह  और क़सर अदा करना

(7) रात वही सो कर गुज़ारना

(8) सुबह नमाज़े फज्रअदा करना

(9) तुलुआफताब से पहले मीना रवाना होना

 

10 जिल हिज्जा – 

(1)  मक्का का तवाफ़ करना

(2) क़ुरबानी करना

(3) मक्का से मीना वापस आना

(4) हलक या तकसीर  करना

(5) बुलंद आवाज़ से तकबीर कहना

 

11,12.,13 जिल हिज्जा – 

(1) तमाम रातें मीना में गुज़ारना

(2) तकबीर की कसरत से पढना

(3) 12 जिल हिज्जा को वापस आना हो तोगुरुबे आफताब से पहले मीना से निकलना

(4) मक्का वापस आ कर अपने वतन लौटने से पहले तवाफ़ करना

हज के दौरान की रुक्न (रस्में) – 

(1) इहराम बांधना

(2) काबा का तवाफ़

(3) सफा और मरवा का चक्कर लगाना

(4) शैतान को पत्थर मारना

(5) जानवर की कुर्बानी

(6) सिर के बाल मुंडवाना या कतरवाना

 

हज के मुताल्लिक मसले मसाइल – 

 

मसला –

उम्र भर में एक बार हज करना फ़र्ज़ है और कई बार हज किया तो एक फ़र्ज़ हुआ और सब नफ्ल है और उनका भी बहुत बड़ा सवाब है|

मसला – 

अगर जवानी से पहले लड़कपन में कोई हज किया है,उसका कुछ एतबार नहीं है और अगर मालदार है,तो जवान होने के बाद फिर हज करना फ़र्ज़ है और जो लड़कपन में किया है,वो नफ्ल है|

मसला – 

अंधे पर हज फ़र्ज़ नही,चाहे जिनता मालदार हो|

मसला – 

जब किसी पर हज फ़र्ज़ हो गया,तो तुरंत उसी साल हज करना वाजिब है,बिला मज़बूरी के देर करना और ये सोचना की अभी उमर नही है,फिर किसी साल हज कर लेंगे,फिर दो या चार साल के बाद भी हज कर लिया ,तो अदा हो गया,लेकिन गुनाह होगा|

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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