بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
” शरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
40 हदीसें –
सलमान (रजी०) कहते हैं कि मैंने हुज़ूर अकदस (स० अ०) से पूछा कि वह 40 हदीसें,जिन के बारे में यह कहा है कि इसको याद कर ले,जन्नत में दाखिल होगा,वह क्या है? हुज़ूर अकरम (स ०अ०) ने इरशाद फरमाया –
1. अल्लाह पर ईमान लवे,यानी उसकी ज़ात व सिफात पर |
3. और फरिश्तों के वजूद पर |
6. और मरने के बाद दोबारा ज़िन्दगी पर |
7.और तकदीर पर की भला और बुरा जो कुछ होता है,सब अल्लाह ही की तरफ से है। |
8. और गवाही दे,तू इस आम्र की,की अल्लाह के सिवा कोई माबुद नहीं और हुज़ूर (स०अ०) उसके सच्चे रसूल हैं। |
9. हर नमाज़ के वक़्त कामिल वज़ू कर के नमाज़ कायम करे (कामिल वज़ू वह कहलाती है जिस में आदाब व मस्तहिबात की रियायत रखी गई हो)हर नमाज़ के वक़्त इशारा है इस बात की तरफ की नई वज़ू हर नमाज़ के लिए करे,अगरचे पहले से वज़ू हो यह मुस्तहब है।और नमाज़ के कायम करने से इसके तमाम सुनने और मुस्तहिबात का अहतमाम करना मुराद है। दूसरी रिवायत में वारीद है। तर्जुमा – जमायत में सफों का हमवार करना की किसी किस्म का तेढ़ या दरमियान में ख़ला ना रहे,यह भी नमाज़ कायम करने के मेहफुम में दाखिल है। |
11. और रमज़ान के रोज़े रखे। |
12. और माल हो तो हज् करे,यानी और जाने की कुदरत हो,तो हज भी करे, चुकि अक्सर मानेह माल ही होता है,इसलिए इस को ज़िक्र फरमा दिया वरना मकसूद यह है कि हज के शरीयत पाए जाते हो तो हज करे। |
13. बारह रकात सुन्नते मुआक्केदा रोजाना अदा करे,इसकी तफसील सारे रिवायत से इस तरह आई है के सुबह से पहले दो रकात,जोहर से पहले चार रकात और जोहर के बाद दो रकात,मगरिब के बाद दो रकात और ईशा के बाद दो रकात | |
14.और वित्र की किसी रात में ना छोर चुकि वह वाजिब है और उस का एहतमाम सुन्नतों से ज्यादा है,इसलिए उसको तकिदी लफ्ज़ से फ़रमाया। |
15. और अल्लाह के साथ किसी को शरीक ना करे। |
16. और वालीदैन की नाफरमानी ना करे। |
17.और ज़ुल्म से यतीम का माल ना खाए,यानी अगर किसी वजह से यतीम का माल खाना जायज हो,जैसा कि बाज सूरतों में होता है,तो मुजाएका नहीं। |
22. खवाईशाते नफसनिया पर अमल ना करे। |
23. मुसलमान भाई की गीबत ना करे। |
24. अफिफा औरत को तोहमत ना लगाए(इसी तरह अफीफ मर्द को) |
25. अपने मुसलमान भाई से कीना ना रखे। |
26. लहब लइब में मशगूल ना हो |
27. तमाशईयों में शरीक ना हो |
28. किसी पस्ता कद को एब की नीयत से ठिगना मत कहो यानी कोई इब्दार लफ्ज़ एसा मशहूर हो कि उसके कहने से एब समझा जाता हो,ना एब की नीयत से कहा जाता हो |
29. किसी का मज़ाक ना उड़ाए |
30. ना मुसलमानों के दरमियान चुगलखोरी करे |
31. और हर हाल में अल्लाह जल्ल शाहनहू की नेमतों पर उसका शुक्र करे। |
32. बला और मुसीबत पर सब्र करे |
33. और अल्लाह के अजाब से बे खौफ मत हो |
34. रिश्तेदारों से कता ए ताल्लुक मत करे |
35. बल्के उनके साथ सिला रहमी करे |
36. अल्लाह की किसी मखलूक को लानत मत करे |
37. सुभानल्लाह, अलहम्दुलिल्लाह,ला इलाहा इल लल लाह और अल्लाह हूं अकबर,इं लफ़्ज़ों का अक्सर विर्द रखा कर |
38. जुमाह और ईद में हाजरी मत छोर |
39. और इस बात का यकीन रख की जो कुछ तकलीफ व राहत तुझे पहुंची वह मुकद्दर में थी,जो टलने वाली ना थी और जो कुछ नहीं पहुंचा ,वह किसी तरह भी पहुंचने वाला ना था। |
40. और कलामुल्लह शरीफ की तिलावत किसी हाल में भी मत छोर |
सलमान रजी ० कहते हैं,मैंने हुज़ूर अकरम स ० आ ० से पूछा कि जो शक्स इस को याद कर ले,उसको क्या अज़र मिलेगा?हुज़ूर स ० आ ० ने इरशाद फरमाया की हक सुभाना व तकाद्दस उसका अंबिया और उल्मा के साथ हशर फरमाएगा।
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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